अक्षय तृतीया पर विशेष प्रस्तुति
[१]
नयन करुणा समम दृष्टि
सौम्यता मुख प्रेम वृष्टि
ब्रह्म तेजस निःसृती इव
....................... गंधित कमले [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[2]
युद्ध विद सम्पूर्ण सज्जित
रुद्र उर आक्रोश मज्जित
परशु पाश कृपाण सायक
....................... शंख चक्र धरे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[३]
भयं शोकं मनस्तापम
काम क्रोधं च दुष्पापम
सकल जन मन ग्रंथियों पर
....................... चलाता फरसे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[४]
जमद'ग्नि सुत, राम बालक
पिता आज्ञा वचन पालक
गंध मादन पर अहर्निश
....................... शिव तपस्य करे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[५]
शिव ह्रदय तप से द्रवित कर
दिव्य अस्त्र समग्र लेकर
प्राप्त ज्ञान प्रयोग सबका
....................... कर लिया शिव से [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[६]
मुक्त कर ला, काम धेनुक
शीर्ष हत कर मात रेणुक
पिता आज्ञा, मांग वर से
....................... पुनः जीवन दे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[७]
अपहरण महिषा विमर्दन
लूट चोरी अनीति वर्द्धन
सहस्रबाहु संग सारे
....................... इति हुए जड़ से [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[८]
अश्वमेधी यज्ञ में त्वम्
त्यागते सम्पूर्ण राज्यं
चल दिए उत्कल जलाशय
....................... गिरी महेंद्र वसे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[९]
सिय स्वयंवर समय शिंजिनी
चढ़ गयी धनु राम, कंजनी
देख लोचन, तेज विष्णु
....................... राम को देते [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[१०]
उवाच नारद विश्व के हित
प्रभो.! दत्तात्रेय संचित
त्रिपुर सुन्दरि मंत्र जप से
....................... शक्ति लब्ध करे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[११]
द्रोण परशुराम शिष्यं
तक्र वत कुरु-मूल शून्यं
विवशतावश नय विपक्षी
....................... पक्ष किन्तु लड़े [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[१२]
गुरु गदा बलराम अभयम
कर्ण शिष्यं 'ब्रह्म' वदयम
भीष्म ने भी शिष्य बनकर
....................... दिव्य अस्त्र वरे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[१३]
दीन रक्षक दुष्ट घातक
नष्ट करते सकल पातक
नींव धरकर विश्व में तुम
....................... प्रजातंत्र तरे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[अखिल भारतीय ब्राहमण सेवासंघ के विशेष आग्रह पर प्राचारार्थ]
यह स्तुति गीति शैली में होने से टेक के रूप में 'यययी..ययी' [निरर्थक शब्द] सहारे के लिए प्रयोग में लाया गया है. इसका कोई अर्थ नहीं है.
उवाच में एक 'उ' मात्रा अखर रही है सो उसे आप उ को स्पर्श करते हुए केवल 'वाच' ही पढ़ें.
[१]
नयन करुणा समम दृष्टि
सौम्यता मुख प्रेम वृष्टि
ब्रह्म तेजस निःसृती इव
....................... गंधित कमले [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[2]
युद्ध विद सम्पूर्ण सज्जित
रुद्र उर आक्रोश मज्जित
परशु पाश कृपाण सायक
....................... शंख चक्र धरे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[३]
भयं शोकं मनस्तापम
काम क्रोधं च दुष्पापम
सकल जन मन ग्रंथियों पर
....................... चलाता फरसे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[४]
जमद'ग्नि सुत, राम बालक
पिता आज्ञा वचन पालक
गंध मादन पर अहर्निश
....................... शिव तपस्य करे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[५]
शिव ह्रदय तप से द्रवित कर
दिव्य अस्त्र समग्र लेकर
प्राप्त ज्ञान प्रयोग सबका
....................... कर लिया शिव से [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[६]
मुक्त कर ला, काम धेनुक
शीर्ष हत कर मात रेणुक
पिता आज्ञा, मांग वर से
....................... पुनः जीवन दे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[७]
अपहरण महिषा विमर्दन
लूट चोरी अनीति वर्द्धन
सहस्रबाहु संग सारे
....................... इति हुए जड़ से [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[८]
अश्वमेधी यज्ञ में त्वम्
त्यागते सम्पूर्ण राज्यं
चल दिए उत्कल जलाशय
....................... गिरी महेंद्र वसे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[९]
सिय स्वयंवर समय शिंजिनी
चढ़ गयी धनु राम, कंजनी
देख लोचन, तेज विष्णु
....................... राम को देते [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[१०]
उवाच नारद विश्व के हित
प्रभो.! दत्तात्रेय संचित
त्रिपुर सुन्दरि मंत्र जप से
....................... शक्ति लब्ध करे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[११]
द्रोण परशुराम शिष्यं
तक्र वत कुरु-मूल शून्यं
विवशतावश नय विपक्षी
....................... पक्ष किन्तु लड़े [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[१२]
गुरु गदा बलराम अभयम
कर्ण शिष्यं 'ब्रह्म' वदयम
भीष्म ने भी शिष्य बनकर
....................... दिव्य अस्त्र वरे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[१३]
दीन रक्षक दुष्ट घातक
नष्ट करते सकल पातक
नींव धरकर विश्व में तुम
....................... प्रजातंत्र तरे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]
[अखिल भारतीय ब्राहमण सेवासंघ के विशेष आग्रह पर प्राचारार्थ]
यह स्तुति गीति शैली में होने से टेक के रूप में 'यययी..ययी' [निरर्थक शब्द] सहारे के लिए प्रयोग में लाया गया है. इसका कोई अर्थ नहीं है.
उवाच में एक 'उ' मात्रा अखर रही है सो उसे आप उ को स्पर्श करते हुए केवल 'वाच' ही पढ़ें.
aapka yah rup vahh satya hi kaha hai aapne
जवाब देंहटाएंjitna jano utna kam
परशुराम जयंति की बधाई.
जवाब देंहटाएंपरशुराम के लिए मैंने पहली बार स्तुति पढ़ी ..बहुत भावमयी ...सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और आप्त ! परशुराम जीवन की समग्र सूत्र गाथा ही है यह!
जवाब देंहटाएंऐसी प्रांजल रचना बस आपके ही वश की है यहाँ !
शानदार, भावपूर्ण और उम्दा प्रस्तुती! परशुराम जयंती की हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर
जवाब देंहटाएंपरशुराम जयंती की हार्दिक बधाई!
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर
जवाब देंहटाएंपरशुराम जयंती की हार्दिक बधाई!
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर
जवाब देंहटाएंपरशुराम जयंती की हार्दिक बधाई!