बारह महीने बाद फिर से
कान पर मफ़लर लपेटे
आ रहा जो कंपकंपाता
ईसवीं का साल नूतन ।
करो स्वागत - कर नमस्ते
पास में अपने बिठाकर
ओड़ने को दो रजाई
चाय कॉफ़ी पूछो भाई।
यूँ तो पीछे आ रहे हैं
और भी उसके मुसाफिर
करो उनका भी सु-आगत
उसी हर्षोल्लास से तुम।
इस मुसाफिर भीड़ में ही
विक्रमी संवत दिखेगा
ध्यान रखना - भाई मेरे,
पूर्वजों को भूल मत रे!
(प्रतिपल नवीन है मानो तो/ क्या नव वर्ष क्या गत वर्ष। कामना सदा रखो शुभ/ रहो उत्फुल्ल हुवे उत्कर्ष।)