रविवार, 4 अप्रैल 2010

पुलिस-पीड़ित

वाह रे आज का प्रजातंत्र / घूमते सब गुंडे स्वतंत्र / हाय, फैला कैसा आतंक / लगे हैं रक्षक-भक्षक अंक / पुलिस पर एक बड़ा है मंत्र / किसी को पीट करें परतंत्र / घोर है उनका अत्याचार / रोयें सब जन-जन हो लाचार / बनाया था जिनको सरताज / वही सर चढ़े हुए हैं आज / लूटते लाज करें दुश्काज / गिरी न अब तक उनपर गाज।

प्रभु ! एक विनती है सुन लो / पुलिस को छोडो या धुन दो / हमें तुम ऐसे रक्षक दो / जो भक्षक के भक्षक हों।

या फिर,

करें ये राज करें ये राज / शीघ्र आयें हरकत से बाज़ / नहीं तो हो जाएगा नाश / हमारा ये सुन्दर समाज।

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नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.