"मनुष्य के विकास के लिए मातृभाषा उतनी ही आवश्यक है जितना कि बच्चे के शारीरिक विकास के लिए माता का दूध. बालक पहला पाठ अपनी माता से ही पढता है, इसीलिए उसके मानसिक विकास के लिए उसके ऊपर मातृभाषा के अतिरिक्त कोई दूसरी भाषा लादना मैं 'मातृभाषा' के विरुद्ध पाप समझता हूँ."
— मोहनदास करमचंद गांधी