मंगलवार, 16 मार्च 2010

कल भी मैं कहूँगा

आज तुम इन्क्रीमेंट ना दो, ... ना दो
कल भी मैं कहूँगा
तुम देनवारे हो, दाता हो, स्वामी हो, गोविन्द हो
मेरे अप्रैसल फ़ार्म में मेरा पुनः मूल्यांकन
करने वाले अथार्टी पर्सन
मेरा परमोशन रोके रहो, ... रहो
तुम्हारे लिए
पेज़ दर पेज़ एन्टर करते
तुम्हारे ही दिल में एक दिन
एन्टर कर जाऊंगा।

तुम्ही ने दिया है यह हक़
तुम्ही ने हाथों में बाँधी है एन्टर करने की स्पीड
यह मैं हर क्षण जानता हूँ।

गति यहाँ सब कुछ है, ...
सांस गिन कर लो
शरीर के अकस्मात् पड़ने वाले
दबावों को झेलते रहो।
वाशरूम की तरफ मुँह न करो
कॉफी, सूप चाय का जायका भूल जाओ।
टारगेट अचीव करो
वही पुराने कछुआ सर्वर की पीठ पर चढ़कर।

ओ, मेरे धैर्य की पराकाष्ठा गोविन्द
मेरी भाषा से भयभीत रहने वाले मिलिंद
मैं तुम्हें पहचानता हूँ
मांगो तुम चाहे जो
मांगोगे - दूंगा -
श्रम, गति, समय।
तुम दोगे जो - मैं सहूंगा -
उपेक्षा, डांट-फटकार बेवजह की।
"परमोशन"
आज नहीं/ कल सही
कल नहीं/ साल भर बाद सही
सही ...
मेरा तो नहीं है बस
कि अपनी ही पीठ थपथपाऊँ
अपने हर कार्य पर।
खुद को धकेलता ले जाऊं
महत्पूर्ण कुर्सियों के
आस-पास।

ऍक ही नौकरी है ... बाबूजी
और जगह सीवी डाला नहीं
बेवजह की भागदौड़ होती नहीं अब
खूब पैसा बर्बाद कियें हैं
चिट्ठी पत्री में
नौकरी के आवेदनों को करते-करते।

स्वामि!
आज नहीं/ कल सही
सोच समझकर
थोड़े ही शब्दों में
किफायत के साथ
एक-एक, दो-दो
अच्छे-अच्छे शब्द
सबको बाँट दो।

काम करने वाले
अपने ही काम में
रूचि नहीं ले पा रहे हैं
कोशिश करके
अधरों के मध्य एक
स्मिति को बैठाओ और
सबके पास घूम जाओ।

फिर देखना
सभी काम करने वाले
नवीन उत्साह नयी उमंग
के साथ काम करने लगेंगे।

आज तुम इन्क्रीमेंट ना दो
ना दो
कल भी मैं कहूँगा।

मेरे पाठक मेरे आलोचक

Kavya Therapy

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.