पिये! तुम गरमी में ना आओ.
जहाँ पर रहती हो, रह जाओ.
ताप से मैं आकुल-व्याकुल
ह्रदय-खग करता है कुल-कुल
पिकानद साथ रहो मिलजुल
आपका रूप बड़ा मंजुल
उसी को मेरे लिए सजाओ.
जहाँ पर रहती हो, रह जाओ.
आपके मौन शब्द मुझसे
न जाने कितने ही अतिशय
बात कह जाते थे रसमय
पिये! फिर से वैसी ही लय
लिए तुम मुझमय गाने गाओ.
जहाँ पर रहती हो, रह जाओ.
चली फिर भी तुम इक दो पग
रोकते हैं खग भी जग-जग
सजी आती हो क्यूँ री अब
मना करते हैं फिर से सब
अरी! तुम बात मान जाओ.
जहाँ पर रहती हो, रह जाओ.