बुधवार, 3 नवंबर 2010

स्मृति-झलक



मैं ब्लॉग जगत के उन सभी कैदियों की बारी-बारी स्मृति-झलक दिखाये देता हूँ जिनसे मेरी आत्मीयता है. 
जब मैंने अपनी पहली रचना डाली तो मुझे पता नहीं था कि 
— पोस्ट वाली जगह के नीचे कमेन्ट बॉक्स का क्या रोल है.
— इसे लोग पढेंगे भी या नहीं.
ऑफिस के साथी इन्दर कुमार जी ने मेरा ब्लॉग बनाने में सहयोग किया. 
ऑफिस में लंच के समय चोरी से ब्लॉग बनाया गया. "काव्य थेरपी" 
जब भी समय मिलता तो कुछ-न-कुछ ब्लॉग पर डालने लगा. 
लेकिन एक दिन क्या हुआ कि प्रशंसा से सनी एक टिप्पणी आ गयी और मैं बुरी तरह घबरा गया. 
मैंने पूरी पोस्ट ही डिलिट कर दी. कई दिन परेशान रहा.
तब ब्लॉगजगत और चिट्ठाजगत को चोरी-छिपे जानने और समझने में लगाए. 

खैर धीरे-धीरे कई बातें जान गया और आज भी मुझे इसकी कई सुविधाओं की जानकारी अमित शर्मा, दीपचंद पाण्डेय और अब कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ श्री सतीश सक्सेना जी देते रहते हैं. 
प्रारम्भ में राज भाटिया और समीर लाल जी ने मुझे प्रोत्साहित किया और मैंने उन्हें जाना लेकिन उनके ब्लॉग पर नहीं गया. बाद में जाना जो टिप्पणी करते हैं उनके अपने-अपने ब्लॉग भी होते हैं. 

इन सभी स्व-अनुभवों से पहले मेरे नाम वाले ब्लॉग को कोन्स्टेबल सुमित प्रताप सिंह ने बनाकर मुझे बताया था और उसके फायदे बताये थे लेकिन "जब तक स्वयं धारा में नहीं कूदते तैरना नहीं आता". सो धीरे-धीरे मित्रों की मदद से मैं ब्लॉगजगत में बढ़ता गया. 
अब मुझे महसूस ही नहीं होता कि मेरा दायरा एक अंकीय ही है. मेरा परिचय दो अंक तक बढ़ गया है और शायद भविष्य में तीन-चार अंक भी छू ले. 

मैं नाम लेकर अपने कुछ परिचितों को मंगल कामनाएँ देना चाहता हूँ. 
— महामूर्खराज नाम से लिखने वाले, सभी के लिये प्रेम रखने वाले मुकुल अग्रवाल जी 
— खयालों के कूप में रहने वाले हरदीप सिंह राणा 'कुँवर' जी 
— ब्लॉग लेखन में निरंतरता की मेरी प्रथम प्रेरणा दिलीप सिंह जी 
— बिंदास भावेन सम्पूर्ण समीक्षात्मक वार्ता करने वाले रोहित जी 
— खासतोर पर नवजात ब्लोगरों को सामान्यतः सभी को ऊर्जा देने वाले समीर लाल जी 
— अपनी कविताई से माँ सरस्वती और माँ भारती की सेवा में लगे संजय भास्कर जी, 
— अपने बडप्पन की छाया देने वाले श्री अरविन्द जी 
— व्याकरणिक त्रुटियों पर ध्यान दिलाने वाली हरकीरत जी 
— अपनी रचनाओं से मंत्रमुग्ध करने वाले अविनाश चन्द्र जी 
— संस्कृत पठन-पाठन का संकल्प लिये ब्लॉग जगत में बढ़ने वाले श्री आनंद पाण्डेय जी 
— स्वयं को कुटिल खल कामी कहकर दूसरों के लिये कहने को कुछ न छोड़ने वाले संजय जी  
— कभी ना खाली होने वाले अपने तरकश से कविता के पैने तीर चलाने वाले स्वर्णकार राजेन्द्र जी 
— प्रायः सही आकलन कर अंक देने वाले अनचाही बहसबाजी में नाराज हुए उस्ताद जी 
— 'मुझे भी खिलाओं नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे' वाली तर्ज पर आये अंग्रेजी के अध्यापक डॉ. जितेन्द्र जौहर जी.... [मजाक किया है बुरा ना मानियेगा जितेन्द्र जी] 
— बहुत अनुनय-विनय वाली कविताओं के बाद दर्शन देने वाले और अपनी बुद्धिमत्ता से प्रभावित करने वाले मेरे नवल प्रेरणा स्रोत +
— स्वसा दिव्या जी 
— धर्मध्वजा लेकर बढ़ने वाले और मुझे भी अपनी टोली में शामिल कर लेने वाले श्री अमित शर्मा जी 
— अपने विविध और आधुनिकतम विचारों से भिगोने वाले मेरे बचपन के साथी श्री दीपचंद पाण्डेय जी, 
— मेरी पाठशाला के फाउंडर मेंबर और मोनिटर हंसराज सुज्ञ जी 
— पाठशाला में प्री-नर्सरी के संजय जी और आउटर स्टुडेंट नरेश जी 
— विचारों को तर्क से ग्रहण करने के हिमायती शेखर सुमन जी 
— घर को मन में बसाए नगर में दिन बिता रहे देव कुमार झा जी 
................. और वे सभी जिनसे अभी जुड़ना शेष है इस दीपावली को मैं उनके नाम से अपनी स्मृति में प्रेम के दीप जला रहा हूँ.  

वैसे तो कई अन्य भी हैं जो मेरी स्मृति में ऊँचे आसन पर बैठे हैं वे इतने ऊँचे बैठे हैं कि वे प्रायः उनको मुझसे संवाद करना याद नहीं रहता. त्यौहार वाले दिन भी नहीं. उन्हें मेरा चरण स्पर्श. क्योंकि उनके चरण ही दिखायी दे रहे हैं. 

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नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.