गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

करूँ विश्वास कैसे मैं

नवजात बच्चे
लगते अच्छे
निर्विवादित सत्य है यह।
पूछते — 'अंतर'
— दिखाकर
जाति, उनका धर्म क्या है?

नहीं उत्तर पास मेरे
आपकी नज़रों में कट्टर
जातिवादी मैं रहूँगा।
चाहे चूमूँ गाल उनके
या ह्रदय वात्सल्य भर लूँ
नयन पर कुछ चमक लाये।

प्रश्न पूछूँ प्रश्न बदले :
'बीज' से बन 'वृक्ष' जाए
बीज उत्तम खोजते क्यों?

बीज के अन्दर छिपा
इक पेड़ पूरा।
पर, अधूरा —
ज्ञान ये तो।
'कल्प' ही होगा
नहीं 'विष' होने पावेगा
"करूँ विश्वास कैसे मैं?"

[कभी-कभी प्रश्न का उत्तर प्रतिप्रश्न में छिपा होता है.]

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नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.