मैंने तो सोचा था
मेरा 'वोट' करेगा 'जनसेवा'
नहीं पता था
वोट-वृक्ष के फल खा जायेगी बेवा.
मैंने तो सोचा था
बोया 'बीज' बनेगा 'तरु-मेवा'
नहीं पता था
विषबेलें ही लिपट बनेंगी 'तरु-खेवा'.
मैंने तो सोचा था
होती 'देश' प्रथम फिर 'स्व' सेवा
नहीं पता था
लूट करेंगे मुखिया जी ही 'स्वमेवा'.
मैंने तो सोचा था
'मोहन' अर्थ जगत के हैं देवा.
नहीं पता था
निकलेंगे ये 'जान-कलेवा दुःख-देवा'.