रविवार, 7 नवंबर 2010

मेरे यहाँ एक रिक्ति है जूते पोलिश करने की

ओबामा !
आपका
भारत में सु-आगत है.
हम जानते हैं कि
आपने काफी हथियार
पाकिस्तान को बेचे
मदद की हमेशा
उसके बुरे वक्त में
अब क्या बुरे वक्त में वह तुम्हारा साथ नहीं देगा?
आतंकी शिविरों में जिहादियों की हमेशा उसे ज़रुरत रहती है.
आप अपनी बची-खुची पूँजी को वहाँ इन्वेस्ट कर सकते हो.
अभी सुनहरा अवसर है, वह जोह रहा है रास्ता किसी बड़े स्पोंसर का.
अभी भी आप उसकी नज़रों में बड़े का ओहदा रखते हैं.

खैर, आपके बड़प्पन का कद भारत में भी छोटा नहीं हुआ है.
आप अगर अपने निवेशकों के लिए सम्मान की नौकरी चाहते हैं तो
मेरे यहाँ एक रिक्ति है जूते पोलिश करने की. मासिक वेतन १००० रुपये होगा.
यहाँ नये छोटे कर्मचारी को यह भी बड़ी मुश्किल से मयस्सर है.
इस विचार को आप मेरी रहम ना समझना
यह विचार तो
'श्रीराम सेतु में योगदान देने वाली
गिलहरी की प्रेरणा से आया है.
हमारी संस्कृति में अतिथि को खाली हाथ लौटाना
असभ्यता मानी जाती है.
अतः हम पिछली सभी कटुताओं को भुलाकर
फिर से नये रिश्ते बनाने की भूल करते हैं.
आपकी धरती की गंध हमारी मिट्टी की गंध में इस कदर मिल चुकी है कि
कोई नहीं जान पायेगा आपके उन मंसूबों को जो घोर स्वार्थ की सड़ी गंध से
हमारी सांस्कृतिक शिष्टताओं को नाक-मुँह सिकौड़े भगाने को विवश किये है.
चाहता हूँ कि सभी सामर्थ्यवान
कम-से-कम सहयोग की भाषा तो बोलें.
क्या मैंने जूते पोलिश का ऑफर देकर बुरा किया ?
क्या ताउम्र भारतीय ही दूसरे देशों में जाकर छोटे समझे जाने वाले जॉब करता रहेगा ?
क्या होटल मेनेजर के लिए गोरी चमड़ी और बर्तन माजने के लिए काली चमड़ी फिक्स है ?
क्या उनके प्रतिबंधों को हम तो आदर दें और
अपनी ही ज़मीन पर उनकी सुरक्षा-व्यवस्था को प्रतिबंधित कर पाने की हिम्मत भी न कर पायें?
मैं क्या करूँ ?
मैं क्यों नहीं पचा पा रहा हूँ ओबामा के आने को ?
हे ईश्वर! मेरे मन में सभी के लिए प्रेम क्यों नहीं भरता ?

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नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.