चुरा खेत से बन्दर जी ने
लिया एक तरबूज़
छूट गया पानी के अन्दर
हाथ हुए जब लूज़
दरियायी घोड़ा जल्दी से
पानी में घुस आया
हुई छपाक, लपककर उसने
भारी तरबूज़ उठाया
कछुए जी आराम कर रहे
कीचड़ बीच किनारे
भूख-प्यास से परेशान थे
गरमी से दुखियारे
पीठ फेर दरियायी घोड़ा
कछुए से कतराया
खुद ही सब खा गया अकेले
बन्दर भी खिजियाया
खा-पीकर दरिया का घोड़ा
मुँह पोंछकर बोला
मुझपर था तरबूज़ रखन को