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जब आप उपलब्ध होते हैं
तब मैं अनुरागी हो जाता हूँ.
तब मैं आपकी नहीं सुनता
बस अपनी ही कहता हूँ.
>>>>>>>>>>>>>> क्या यह महत्व बनाने की कोशिश है
>>>>>>>>>>>>>> या फिर प्रेमातिशयता का वाचिक प्रवाह?
जब आप उपलब्ध होते हैं
तब आपके मुझसे बोले कथन
'शब्दों में'
खालिस शब्द ही रह जाते हैं
उनके भीतर का 'अर्थ' निकालना
मुझे याद नहीं रहता.
>>>>>>>>>>>>>> क्या यह आपके प्रति घोर उपेक्षित भाव है
>>>>>>>>>>>>>> या फिर मेरी मुग्धावस्था का आत्मदाह?
जब आप उपलब्ध होते हैं
तब मैं आपको बुला लेना चाहता हूँ
'समीप'
जबकि यह 'उपलब्धता' हमेशा आपकी तरफ से होती है
>>>>>>>>>>>>>> क्या यह मात्र 'शिष्टाचार-निमंत्रण' है
>>>>>>>>>>>>>> या फिर मेरी आत्मीयता का ताकना अदृश्य राह?
[प्रिय अमित शर्मा जी के लिए मेरे मनोभाव]