मेरे ह्रदय में
पुण्य भी है पाप भी
वरदान भी है शाप भी
बिलकुल अवध के एक ढाँचे सा।
सोचता
सब नष्ट कर दूँ।
फिर से बनाऊं 'एक मंदिर'
शुद्ध, सुन्दर, पुण्य-संचित
यही बालक मन की मेरी
आखिरी जिद।
एक राखूँ
एक अर्पित।
हाथ मेरे
है खिलौना
'श्री राम भूमि बाबरी मस्जिद'।
(वैसे तो इस समस्या का हल निकल नहीं पाया है। लेकिन बालक मन तुरत-फुरत फैसला करना जानता है।)