मंगलवार, 29 मार्च 2011

प्रशंस-भोज


कलाकार का धर्म 
कला में कल की रचना करना. 
एक नया आकार बना कर 
कल को रंगी करना. 
बीते कल को सोच 
ध्यान से धीरे-धीरे चलना. 
क्षण-भंगुर सपनों में 
अपने नेत्र-निमीलन मलना. 
कलाकार-प्रतिभा का भूषण 
केवल भोग नहीं है. 
उसकी भी पाने की इच्छा 
प्रशंस-भोज रही है.

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नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.