कलाकार का धर्म
कला में कल की रचना करना.
एक नया आकार बना कर
कल को रंगी करना.
बीते कल को सोच
ध्यान से धीरे-धीरे चलना.
क्षण-भंगुर सपनों में
अपने नेत्र-निमीलन मलना.
कलाकार-प्रतिभा का भूषण
केवल भोग नहीं है.
उसकी भी पाने की इच्छा
प्रशंस-भोज रही है.