रविवार, 9 अप्रैल 2023

दिखते हैं


[1]  
सब्जबाग अब भी ज्यों के त्यों दिखते हैं।
सपने मिथ्या राम राज के दिखलाते वे दिखते हैं।

[2] 
वे कुछ चोरी-चोरी लाते-ले जाते।
चौकीदार चतुर प्रहरी क्यों सोते सोते दिखते हैं।

[3] 
ना है घुसा हुआ कोई, ना है कब्जा।
स्टेचू ओफ यूनिटी के कंधे पर वे क्यों दिखते हैं।

[4] 
न्याय मिलेगा संविधान के मंदिर में 
लिए तराजू बैठे लेकिन खोंखोंई क्यों दिखते हैं।

[5] 
हामिद मेले में आकर चिमटा ढ़ूँढ़े।
मगर उसे तो सभी खिलौने चीनी चीनी दिखते हैं।

[6] 
दो हजार दो से पहले की है यारी
देखो तो वे अब आकर गुरबान पकड़ते दिखते हैं।

[7] 
कानून के लंबे होते हैं हाथ - सुना।
मगर लफंगे कातिल उसकी बगल तले क्यों दिखते हैं।

[8] 
नहीं कहीं मँहगाई है, ना बेकारी।
हर तरफ कंजूस और आवारा ही बस दिखते हैं।

[9] 
सोच रहा है बीज कभी होगा उद्भव
बिन ज़मीन पानी के बरसों बंद लिफाफे दिखते हैं।


[ खोंखोंई - बंदर ]

बुधवार, 10 जनवरी 2018

अजी हाँ !!

कवियों की प्राय: जो कवितायेँ देखने-सुनने में आती हैं, वे या तो वस्तुस्थिति को बयाँ करती हैं या वे आदर्श की कल्पना करती हैं। उनमें या तो विरोध द्वारा सुधार के स्वर समाहित होते हैं या फिर समर्थन द्वारा प्रशस्ति के। दोनों का ही महत्व है। प्रोत्साहन के लिए समर्थन तो सुधार के लिए सकारात्मक विरोध का भी। प्रस्तुत कविता सत्ता और विपक्ष दोनों पर कटाक्ष करती है।


मेरे प्यारे युवा साथियो!
बदल गया है कामकाज का अब सरकारी ढर्रा
पहले काम नहीं होता जो अब होता है सर्रा
गिद्धराज ने कहा है- "मित्रो, दिन हैं बेहद अच्छे"
"मानो या ना मानो लेकिन डरें वराही बच्चे"
"सच है सच है सच है सच है"
कौवे करते ' काँ' ____________________ अजी हाँ!


मेरे पिछड़े दलित गरीब भाइयो!
अब अमीर होने में होगा बेहद जोखिम ख़तरा
बैंक सभी आधार जुड़ गए खुले सभी के पतरा
लक्ष्मीवाहक गढ़ा खजाना उड़-उड़ पूछ रहे हैं
साँप नेवलों के बिल में घुस जन धन ढूँढ़ रहे हैं
"बच गई, बच गई, बच गई, बच गई"
सब भूखों की 'जां' _________________ अजी हाँ!


मेरे सवा करोड़ देशवासियो!
थर-थर काँप रहा है दुश्मन ठंड न समझो कारण
अभी-अभी है किया फौज ने देशभक्ति को धारण
कुत्तों ने छिप करके अपना शेर शिकार किया है
दहाड़-दहाड़ के बब्बर ने फिर बदला खूब लिया है
याद कर रहा दुश्मन अपनी
खाला-फूफी-माँ ____________________ अजी हाँ!


मेरे सम्मानित जागरूक मतदाताओ!
अब समाज में ऊँचा-नीचा, छोटा-बड़ा न होगा
नीला काला हरा बसंती पहनो जो भी चोगा
बहुरंगी है देश हमारा अलग-अलग हैं फैशन
एक व्यक्ति में दिखें सभी ये शासक वो ही नैशन
दिखे हमेशा चौड़ा सीना
लगना चहिए 'ठां' __________________ अजी हाँ!


मेरे गाँव देहात की माताओ-बहनो!
घर से बाहर बाबाओं का जाल बिछा है भारी
कोई सीधा स्वर्ग दिखाता कोई शुद्ध व्यापारी
तीन धमकियों से डरने का अब युग बीत गया है
अबला ने धर लिया चण्डि का फिर से रूप नया है
एक साथ मिल बोलो सारी
"हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ" __________________ अजी हाँ!

गुरुवार, 4 जनवरी 2018

नया साल आया

pratul1971@gmail.com

तड़पते लोगों ने
उछलते लोगों पे
आॅक्सीजन हड़पने का
इल्ज़ाम लगाया!
... नया साल आया!!

आर्काइव की टेरेसा ने
लाइब्रेरी में
सुरक्षा अभियान चलाया
कहीं कवर, कहीं ताला लटकाया!
... नया साल आया!!

एरोप्लेन मोड के
मोबाइली बाॅस ने
मोबाइल लाइब्रेरी पे
ज़ीरो बजट का सिक्योरिटी लाॅक लगाया!
... नया साल आया!!

दो हजार अट्ठारह
साल भर हद में रहे
सो मिस मरियम ने क्राॅस फिंगर कर
हेरिसन तालों पर भरोसा जताया!
... नया साल आया!!

फंड रेज़ मीटिंग में
प्रोजेक्टर की फोटो ने
जोकरी अंदाज से
फन रेज़ कर दिखाया!
... नया साल आया!!

पुस्तकों को आले में
बैठे-बैठे मज़ा आया।
यूज़र कंप्यूटर्स ने
लिप्सिस सर्वर को
अपना उस्ताद बनाया!
... नया साल आया!!

दीपक की लौ पे
लखनवी पतंगा मंडराया।
एजुकेशन एब्ज़ोर्ब को
एमेजॉन से टाइट लाॅक मंगवाया!
... नया साल आया!!

शैटी की शादी पे
फादर ने रिशेप्सन में
डोगरा कंपनी का
रिमोट ताला दिखाया!
... नया साल आया!!

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

बदलाव के प्रवर्तक

नकद निकालने की चाहत में बैंक से खाली हाथ लौटकर आने वाले का दर्द बयाँ करती है मेरी ये कविता —


आज़ तुम पैसा दो, दो।
कल भी मैं माँगूँगा
तुम बैंक हो, दाता हो
मेरे क्रेडिट डेबिट का हिसाब रखने वाले कलयुगी चित्रगुप्त !
मेरी जरूरत पर मेरा ही पैसा मुझे मत दो, मत दो।
केवल कुबेर, शाहों की तिजोरियों से निभाओ रिश्ता
मानते रहो 'यम की बात'

खाताधारियों के बूँद-बूँद जमा किये पैसों से बने विशाल छत्ते !
अपनी एटीएम मशीन खाली रखो, रखो
मैं अपनी फैमिली के दो-दो खातों में
दिवंगत सीनियर नोटों का
एक और छत्ता लगा जाउँगा।

स्थिति सामान्य होने को
माँगो तुम चाहे जो
50 दिन, 100 दिन, 365 दिन, दूँगा
तुम दोगे जोसहूँगा।
आज नहीं कल सही
कल नहीं साल बाद सही
मेरा तो नहीं है कुछ
सब कुछ आपका है
मेरी जमापूँजी, मेरा घर
मेरा भूखा पेट, मेरा सर।

वित्त-व्यवस्था के मुख्य प्रबंधक !
रिज़र्व बैंक के जनसभा प्रवक्ता !
ग्राहक-दुकानदारों को लालचभरी स्कीमों से रिझाने वाले कुशल बनिये !
बातें मत बनाइये, जल्दी से ... संतुलन बनाइये
बदलाव के प्रवर्तक, ‘एकला चलो रे’ नहीं गाते
इतिहास से लेते हैं सीख
न कि अपनी कमियाँ छिपाने को
ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को आरोपित करते हैं।

ओ मन की बात के मंथली बुलेटिन !
मनी यहाँ, कहाँ कुछ है
मनमानी यहाँ सब कुछ है
मेरे धैर्य की पराकाष्ठा
मेरे मुख की उबकाई
मेरी प्राणवमन घुटी
-    मैं तुम्हें पहचान गया हूँ।
तुम्हीं ने बनाया है मुझे मनीमक्खी
तुम्हीं ने लगाया है मुझे कतार में।
‘आर्तनाद’, ‘चीख-पुकारें’
आपके चिल्लाहट भरे संबोधन-हुँकारों के समक्ष
घुटने टेक रही हैं।
आपका काला नोट’बंदी भैंसा
कतार में हुए शहीदों की लाशों पर ताण्डव कर रहा है।

ओ आत्ममुग्धता में सरोबार चमचमाते लोहपुरुष !
मैं आपकी भाग-दौड़, तंदरुस्ती का कायल हूँ
लेकिन अचानक हुए इस गोरिल्ला हमले में
सबके साथ घायल हूँ।
वीर तो बताकर हमला करते हैं।
देश के दुश्मनों से टक्कर लेने को क्या
दहशतगर्दों वाले तरीके अपनाओगे !
चोरों के भीड़ में लापता होने पर
क्या भीड़ पर कोड़े बरसाओगे !

देसी-विदेशी अभिनंदन समारोहों के गोल्ड मेडलिस्ट !
अचीवमेण्ट्स को गिनाने वाले स्टोरीटेलर !
आज तुम पैसा न दो, न दो
कल भी मैं माँगूँगा।

[ चित्र : गूगल से साभार ]

गुरुवार, 7 जुलाई 2016

जिम्मेदार नागरिक

बढ़ती भीड़ में 
पीछे धकेले  जाने के बावजूद 
करता हूँ अपनी बारी का 
लगातार इंतज़ार। 

नफ़रत फैलाती हरकतों पर 
ज़हर उगलते भाषणों पर 
खामोशी के साथ 
 देता हूँ सहिष्णुता का परिचय। 

जुल्म के खिलाफ उठती 
हर आवाज़ में 
मिला देता हूँ चुपचाप 
अपनी भर्रायी आवाज़। 

लाचारी में फैले 
हाथों को हिकारत से न देख 
देखता हूँ घोटाले बाजों को 
घृणा से अधिक, 
क्योंकि में हूँ 
भारत का एक जिम्मेदार नागरिक।

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

नया साल आया …

साभार गूगल

बिल्ली की प्रेयर पे
छींका टूट न पाया॥
नया साल आया …॥

नाथन के बुलउवा पे
कोई नाथ न आया॥
नया साल आया …॥

लिब्सिस ने इशारों पे
छू-मंतर खेल दिखाया॥
नया साल आया …॥

क्रिसमस इवेण्ट पे
अंजू और राजू ने
सेण्टा का रोल निभाया
नया साल आया …॥



फीडबैक मीटिंग में
रेगुलर व्यूअर्स ने
फीलबैड कराया॥
नया साल आया …॥

फंड-एयरशिप में
केवल सेवादारों ने
पैराशूट पाया॥
नया साल आया …॥    

[कार्यालय से प्रभावित कविता है। कुछ विलंब से नये साल की शुभकामनाएँ प्रेषित कर रहा हूँ। 'गत' पर टिप्पणी करते हुए 'भावी' के प्रति लालायित हूँ।]

गुरुवार, 18 जून 2015

भाषिक साधना है काव्य प्र'योग'


शारीरिक स्वास्थ्य के लिए, उसे निरोगी रखने के लिए आज विश्व 'योग दिवस' के बहाने से अपनी सजगता दिखा रहा है।  अब तब न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में कई तरह की पैथीज़ एवं थैरेपीज़ प्रयोग में लाई जा रही थीं और अब स्वास्थ्य जागरूकता की सनातन विधि  के द्वारा एक नवीन क्रान्ति को जन्म दे दिया है।अष्टांग योग के मात्र दो  भाग 'आसन और प्राणायाम' द्वारा  ही लोग योग के महात्म्य को समझने लगे हैं।  इसी सन्दर्भ में 'काव्य' को  मैं योग से पृथक नहीं देख पा रहा हूँ।  

जब कोई बड़ा समारोह होता है विभिन्न कार्यक्रम होते हैं और दूर-दूर से आये लोग अपनी-अपनी प्रस्तुतियाँ देते हैं और कुछ विक्रेता अपनी  दुकानें भी सजाते हैं।  उसी से कोई कार्यक्रम बड़ा समारोह का रूप ले पाता है।  
विश्व योग दिवस  से पहले ही मैं भी 'काव्य थेरेपी' की एक छोटी प्रस्तुति दे रहा हूँ। 

आपके मन में उठने वाले स्वाभाविक प्रश्न :
  • काव्य थेरेपी क्या है?
  • कविता के द्वारा चिकित्सा या रोग से मुक्ति दिलाना कैसे संभव है?
  • क्या ये कोरी बकवास है?
  • क्या इसके द्वारा रोगी के ठीक होने के प्रमाण हैं?
  • क्या इसका वैज्ञानिक / तार्किक आधार है?

मेरा प्रयास संक्षेप में इन प्रश्नों के उत्तर देने का रहेगा :

आज की जीवन पद्धति तनाव ही तनाव देती है। रोज़गार न मिलने से तनाव, मिल जाए तो मन मुताबिक न मिलने से तनाव, समय पर परमोशन या इन्क्रीमेंट न न मिलने से तनाव, मिले तब भी तनाव कि कम मिला; वर्कलोड आदि-आदि।

आज का व्यक्ति :
  • आज के व्यक्ति ने हर हाल में तनावग्रस्त रहना सीख लिया है।
  • खुश रहना उसने कम कर दिया है।
  • खुश रहने का मतलब वह हँसना खिल खिलाना समझता है और वैसी कोशिशें करता है।
  • तनाव रोग का मूल है।
  • सल्बतों वाला कपड़ा जल्दी फटता है।
कविता तनाव समाप्त करती है।

चिकित्सा क्षेत्र में बहुत पहले महर्षि सुश्रुत, महर्षि चरक और नागार्जुन हुए जिन्होंने क्रमशः शल्य चिकित्सा, औषधीय चिकित्सा एवं भस्म चिकित्सा का आविष्कार किया। किन्तु तब भी असाध्य बीमारियों के लिए काव्य चिकित्सा की जाती थी।

काव्य के छह प्रयोजनों में एक प्रयोजन असाध्य बीमारियों से छुटकारे का भी है।

कवियों ने असाध्य रोगों के लिए स्वयं पर परीक्षण किए :
  • कवि मयूर ने कुष्ठ रोग दूर किया सूर्य स्तुति द्वारा।
  • कवि तुलसी ने बाहू पीड़ा दूर की हनुमानबाहुक लिख कर।
कविता के प्रतिकूल परिणाम भी काफी देखने में आयें हैं। इसलिए सावधानी बरती जाती थी।
  • कवि प्रसाद को प्रतिकूल परिणाम भोगना पड़ा।
  • दग्धाक्षर से प्रारम्भ होने वाले काव्य स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते रहे।
  • कवि बिहारी ने राजा जयसिंह की काव्य चिकित्सा की एक दोहे के द्वारा।
  • राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत कवितायें आलस्य और प्रमाद निवारण के लिए अच्छी मानी जाती रही हैं।
  • भोगी जीवन रोगी जीवन हो जाता है।
इसकी चिकित्सा काव्य थेरेपी के पास है।
अच्छी कवितायें लिखे
लिखे नहीं तो सुनें
सुनें नहीं तो पढ़े
इंग्लेंड के विज्ञानिकों को एक शोध में पता चला हैं कि कविता कराने वाले को तनाव नहीं होता इसलिए हर व्यक्ति को कविता करने की सलाह भी देते हैं।
कविता हमारे तनावों का विरेचन है।

शारीरिक उत्सर्जन से भी आराम मिलता है। स्वास्थ्य लाभ होता है। मतलब -
हँसना, रोना, छींकना, खाँसना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है लेकिन संतुलित मात्रा में ही। 
  • हंसने से पेट को
  • रोने से आँखों को
  • छींकने से मांसपेशियों को
  • खाँसने से ग्रंथियों को व्यायाम मिलता है।
शरीर के रोम-रोम को व्यायाम देने के दो रास्ते हैं-
१) शीतल स्नान और 
२) भाव उत्तेजक कविता पाठ


शरीर को व्यायाम देना मतलब
सक्रिय रखना मतलब स्वस्थ रखना

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

करो सफाई मेरे भाई!

घर में खेलो करो पढ़ाई
लेकिन घर में रखो सफाई
मुँह हाथों की करो धुलाई
फिर खाना तुम खूब मिठाई।
 
घर के बाहर पड़े दिखाई
कोई अंकल गाल फुलाई
बोलो उनसे छोड़ो भाई
सुरती खैनी की रगड़ाई।
 
कुछ भी खाकर छिलका फ्लाई
करना नहीं, कहीं थुकाई
मक्खी भिन-भिन उड़ती आई
करो सफाई मेरे भाई!!
 
[बेटे संवत/ व्योम की मांग पर लिखी गयी]

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

तोन्दूमल का झोला


चुरा खेत से बन्दर जी ने
लिया एक तरबूज़
छूट गया पानी के अन्दर
हाथ हुए जब लूज़

दरियायी घोड़ा जल्दी से
पानी में घुस आया
हुई छपाक, लपककर उसने
भारी तरबूज़ उठाया

कछुए जी आराम कर रहे
कीचड़ बीच किनारे
भूख-प्यास से परेशान थे
गरमी से दुखियारे

पीठ फेर दरियायी घोड़ा
कछुए से कतराया
खुद ही सब खा गया अकेले
बन्दर भी खिजियाया

खा-पीकर दरिया का घोड़ा
मुँह पोंछकर बोला
मुझपर था तरबूज़ रखन को
तोन्दूमल का झोला.



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सोमवार, 2 जनवरी 2012

नया साल आया...

कोंग्रेसी लोकतंत्र में

आलोचना न सुनने को

ब्लॉग सदन से टिप्पणी का

ऑप्शन हटाया .................. नया साल आया.



डर कर उजाले से

उल्लुओं ने लक्ष्मी को

लोकपाल से दूर स्विस बैंक में

घर दिलाया. .................. नया साल आया.



अमित से मिर्ची जवाब ले

अनवर जमाल ने

एक से सवालों का

तोता-राग गाया. ................. नया साल आया.



बड़े ब्लॉग क्षत्रपों ने

आमजन की भौं-भौं से

बचने को कमेन्ट बॉक्स पर

बुलेट-प्रूफ कवर चढ़ाया .................. नया साल आया.



सगे और परायों में

'हाँ' में 'हाँ' वालों ने

विश्वासपात्र होने का

फिर सर्टिफिकेट पाया .................. नया साल आया.



आप्रवासी अनुराग ने

भावमयी सरिता की

तीव्र बहती धारा में

बिजली-संयंत्र लगाया .................. नया साल आया.



कुमार राधारमण ने

ब्रह्मचर्य-स्खलन को

विष्ठा-दबाव जैसी

नेचुरल वर्ब बताया. .................. नया साल आया.



रविकर ने छंदों में

ब्लॉग-ब्लॉग घूमकर

आम बातचीत को भी

अच्छे से गाया. .................. नया साल आया.

जारी....

सोमवार, 15 अगस्त 2011

वाह रे आज का प्रजातंत्र !!

वाह रे आज का प्रजातंत्र 
घूमते सब गुंडे स्वतंत्र 
हाय फैला कैसा आतंक 
लगे हैं रक्षक-भक्षक अंक 
पुलिस पर एक बड़ा है मन्त्र 
किसी को पीट करें परतंत्र 
घोर है उनका अत्याचार 
रोंये सब जन-जन हो लाचार
बनाया था जिनको सरताज 
वही सर चढ़े हुए हैं आज 
लूटते लाज करें दुष्काज
गिरी न अब तक उनपर गाज.

प्रभु, एक विनती है सुन लो!
हमें तुम ऐसे रक्षक दो 
जो भक्षक के भक्षक हों.
या फिर,
करें ये राज, करें ये राज 
शीघ्र आयें हरकत से बाज 
नहीं तो हो जाएगा नाश 
हमारा ये सुन्दर समाज.

['लोकतंत्र' जीवित रहे ........ आओ ऎसी कामना करें.]

सोमवार, 25 जुलाई 2011

जान-कलेवा दुःख-देवा

मैंने तो सोचा था 
मेरा 'वोट' करेगा 'जनसेवा'
नहीं पता था 
वोट-वृक्ष के फल खा जायेगी बेवा. 

मैंने तो सोचा था 
बोया 'बीज' बनेगा 'तरु-मेवा'
नहीं पता था 
विषबेलें ही लिपट बनेंगी 'तरु-खेवा'.

मैंने तो सोचा था 
होती 'देश' प्रथम फिर 'स्व' सेवा
नहीं पता था 
लूट करेंगे मुखिया जी ही 'स्वमेवा'.

मैंने तो सोचा था 
'मोहन' अर्थ जगत के हैं देवा.
नहीं पता था 
निकलेंगे ये 'जान-कलेवा दुःख-देवा'.


शुक्रवार, 6 मई 2011

परशुराम-स्तुति

अक्षय तृतीया पर विशेष प्रस्तुति  

 [१]
नयन करुणा समम दृष्टि
सौम्यता मुख प्रेम वृष्टि
ब्रह्म तेजस निःसृती इव
....................... गंधित कमले [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[2]
युद्ध विद सम्पूर्ण सज्जित
रुद्र उर आक्रोश मज्जित
परशु पाश कृपाण सायक
....................... शंख चक्र धरे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]


[३]
भयं शोकं मनस्तापम
काम क्रोधं च दुष्पापम
सकल जन मन ग्रंथियों पर
....................... चलाता फरसे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[४]
जमद'ग्नि सुत, राम बालक
पिता आज्ञा वचन पालक
गंध मादन पर अहर्निश
....................... शिव तपस्य करे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[५]
शिव ह्रदय तप से द्रवित कर
दिव्य अस्त्र समग्र लेकर
प्राप्त ज्ञान प्रयोग सबका
....................... कर लिया शिव से [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[६]
मुक्त कर ला, काम धेनुक
शीर्ष हत कर मात रेणुक
पिता आज्ञा, मांग वर से
....................... पुनः जीवन दे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[७]
अपहरण महिषा विमर्दन
लूट चोरी अनीति वर्द्धन
सहस्रबाहु संग सारे
....................... इति हुए जड़ से [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[८]
अश्वमेधी यज्ञ में त्वम्
त्यागते सम्पूर्ण राज्यं
चल दिए उत्कल जलाशय
....................... गिरी महेंद्र वसे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[९]
सिय स्वयंवर समय शिंजिनी
चढ़ गयी धनु राम, कंजनी
देख लोचन, तेज विष्णु
....................... राम को देते [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[१०]
वाच नारद विश्व के हित
प्रभो.! दत्तात्रेय संचित
त्रिपुर सुन्दरि मंत्र जप से
....................... शक्ति लब्ध करे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[११]
द्रोण परशुराम शिष्यं
तक्र वत कुरु-मूल शून्यं
विवशतावश नय विपक्षी
....................... पक्ष किन्तु लड़े [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[१२]
गुरु गदा बलराम अभयम
कर्ण शिष्यं 'ब्रह्म' वदयम
भीष्म ने भी शिष्य बनकर
....................... दिव्य अस्त्र वरे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[१३]
दीन रक्षक दुष्ट घातक
नष्ट करते सकल पातक
नींव धरकर विश्व में तुम
....................... प्रजातंत्र तरे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[अखिल भारतीय ब्राहमण सेवासंघ के विशेष आग्रह पर प्राचारार्थ]

यह स्तुति गीति शैली में होने से टेक के रूप में 'यययी..ययी' [निरर्थक शब्द] सहारे के लिए प्रयोग में लाया गया है. इसका कोई अर्थ नहीं है.
उवाच में एक 'उ' मात्रा अखर रही है सो उसे आप उ को स्पर्श करते हुए केवल 'वाच' ही पढ़ें.

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

करुणानिधान उर्फ़ चिकना घड़ा

'मुझको वञ्चित' 
---------- किया सो किया। 
'था जो सञ्चित' 
---------- दिया सो दिया। 

कर ली तेरी हर विधि पूजा। 
जबरदस्ती खुश होकर जिया।। 


'सुख था किञ्चित'
---------- मृग मरीचिका। 
'बतरस सिञ्चित' 
---------- दृग यवन्निका*।

है तेरा अन्याय सुरक्षित। 
सुख देकर दुःख अधिक दे दिया।।  


'अमित प्रवंचित'
---------- हुआ क्यों हुआ?
'भौमिक स्वर मित'
---------- हुआ क्यों हुआ? 

करुणानिधान कह कह तुमको
चिकना मैंने घड़ा कर दिया।। 

_____________________
* दृग यवन्निका = दृग यवनिका [पलकें]
यवनिका = रंगमंच का परदा.

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

गांधी गुजरा आया अन्ना

भूखा बैठा वजन घटाता 
जनता की आवाज बढाता 
बेलगाम शासन को काबू 
करने को अनशन अपनाता 

जागी फिर स्वराज तमन्ना 
गांधी गुजरा आया अन्ना.

सत्ताधारी मोटे अजगर 
पड़े हुए हैं कितना खाकर?
नहीं जानता कोई अब तक? 
कौन सपेरा पकड़े आकर? 

पलट गया संशय का पन्ना.
गांधी गुजरा आया अन्ना.

भारत मुद्रा गांधीवादी 
जिसपर जितनी उसकी आंधी. 
असली गांधी नाम लगाकर 
करते चांदी नकली गांधी.

निचुड़ चुका गांधी का गन्ना. 
गांधी गुजरा आया अन्ना.

मंगलवार, 29 मार्च 2011

प्रशंस-भोज


कलाकार का धर्म 
कला में कल की रचना करना. 
एक नया आकार बना कर 
कल को रंगी करना. 
बीते कल को सोच 
ध्यान से धीरे-धीरे चलना. 
क्षण-भंगुर सपनों में 
अपने नेत्र-निमीलन मलना. 
कलाकार-प्रतिभा का भूषण 
केवल भोग नहीं है. 
उसकी भी पाने की इच्छा 
प्रशंस-भोज रही है.

मंगलवार, 22 मार्च 2011

उतरन होली

होली पीछे गयी .. रंग की 
आयी है ... 'उतरन होली'. 
रंगे हुए सियारों की अब 
सुन लो 'हुआ-हुआ' बोली.

"मेरे अनशन ने दिलवाया 
भूखों को .. खाना भरपेट. 
पर 'सुभाष' ने खून माँगकर* 
खुलवाया .. हिंसा का गेट." 

"मेरे ... बन्दर बँटवारे ने 
रोकी .. छीना-झपटी कैट.
पर .. 'नाथू' लंगूर भगाता 
पार .. 'राम नाम' के गेट."*

"मेरे .. 'हरिजन' संबोधन ने 
दी दलितों को बिग नेम-प्लेट. 
'भीमराव जी' फिर भी घूमे 
'अम्बेडकर' का नाम लपेट."*

"वैष्णवजन तो तैने कहिये 
'शैतानों' को ... दे भरपेट. 
उनको दुश्मन कहो देश का 
जो रहते हैं 'आउट ऑफ़ डेट." 



मंगलवार, 15 मार्च 2011

संतापों से दग्ध हुए हृदय में 'त्वरा आह्लाद' है होली

संस्कृत और हिन्दी व्याकरण में 'ह' और 'स/श/ष' को दग्धाक्षर कहा जाता है. 
– क्यों? इन्हें दग्धाक्षर क्यों कहते हैं? 
– क्या ये सभी वर्ण दग्ध (जले हुए) हैं? अथवा 
– इनका नाद दग्ध करता है? 
इनकी गणना ऊष्म व्यंजनों के अन्दर भी होती है. 
– क्या इनके उच्चारण पर ऊष्मा का निस्सरण होता है? अथवा 
– ये उच्चरित होकर ऊष्मा संग्रहित करते हैं? 

जी हाँ, प्रत्येक ध्वनि के अपने-अपने विशेषण हुआ करते हैं और उन विशेषणों का शब्द-रूप औचित्यपूर्ण हुआ करता है. अनायास शब्द-निर्माण या भाव-चित्र के लिये अनुमान से शब्द गढ़ना संस्कृत व्याकरण में तो रहा नहीं |

प्राणियों में मनुष्य ही सार्थक ध्वनि समूहों वाली भाषा का प्रयोग करता है. शोक, हर्ष व अन्य अनुभूतियों पर आंगिक क्रिया करने के साथ-साथ वह उनसे सम्बद्ध ध्वनियों का उच्चारण भी अनायास कर बैठता है. यदि इन सभी ध्वनियों पर ध्यान दें तो पायेंगे कि इनमें से संतापसूचक, पीड़ा-प्रदर्शक और आह्लाद-द्योतक ध्वनियाँ ही 'ऊष्म व्यंजनों वाली' है |

शरद, हेमंत, शिशिर की ऋतुओं में शीत के सताने पर जो ध्वनियाँ मुख से  निकलती हैं वे भी ऊष्म व्यंजनों से बाहर नहीं. कँपकँपी में "ह्ह्ह , हो..हो..हो..",  जलन में श्वास मुख से भीतर-बाहर करते हुए - "शsss.." ध्वनि करना |

कभी ध्यान दें बच्चों को चोट लगने पर, ... जो सबसे पहली ध्वनि होगी .. वह 'अ', 'आ', के स्वरों में मिली ऊष्म व्यंजनों की ही होगी |

विदेशी 'ओह, आsह, आउच' शब्दों में अपनी पीड़ा का मोचन करने वाले लोग भी इन 'ओ,आ' स्वरों में अपनी दग्धता छिपाए हैं | 

'अ, आ' आदि स्वरों को दग्धाक्षरों से पूर्व तभी जोड़कर बोला जाता है जब अपनी पीड़ा या अपनी अनुभूति को दूसरे तक संप्रेषित करना लक्ष्य हो. बच्चा 'उवाँ-उवाँ' करके रोये अथवा कोई मोर्डन महिला 'आउच' करे - ये ध्वनियाँ संकेत मात्र हैं कि उनकी परेशानी को समझा जाये, उन्हें उचित सुरक्षा दी जाये | 

वस्तुतः शब्दों में अधिकांश स्वरों का प्रयोग उन्हें बल प्रदान करने के लिये होता है. अधिक स्वरों का आगम शब्द को  आकर्षक और बरबस ध्यान खींचने वाला बना देता है |

'होली' शब्द में दूसरा व्यंजन 'ल' है जो अन्तस्थ व्यंजन है. यह अनुभूति (हृदय) की आह्लादात्मक ध्वनि है. 'ह' ध्वनि संताप व्यक्त करने के साथ-साथ आह्लाद को भी दर्शाती है |

हँसी के रूप में 'हा.हा.हा...' और हीं.हीं.हीं...' ध्वनियाँ प्रयुक्त होती हैं. इस प्रकार 'ह' और 'ल' दोनों ही व्यंजन आह्लादात्मक उल्लास को व्यक्त करते हैं. किन्तु इन दोनों में अंतर यही है कि 'ल' वर्ण पूर्णतः आह्लाद को दर्शाता है जबकि 'ह' वर्ण की विशेषता 'उन्मोचन' की है |

प्रफुल्लित हृदय 'ल' ध्वनि की पुनरावृत्ति से झूम उठता है, तो संकुचित विश्रांत मन 'आलंबन और उद्दीपन' की श्रेष्ठता के आधार पर संचित पीड़ा को ... 'ह' ध्वनि के रूपों से ... मोचता है | 

पहला रूप शोक का है — 'हा! हाय-हाय! होs.. च्च.[क्लिक ध्वनि] !' ये मनःस्थिति की स्वाभाविक प्रस्तुति है. 
दूसरा रूप हर्ष का है — "हें! [आश्चर्य]......... हु हा हा हा!!  [हँसी] ......... हीं.हीं.हीं.' ये मनःस्थिति की वैकल्पिक प्रस्तुतियाँ हैं किन्तु एक सीमा तक | 

अपने दुःख पर 'हाय-तौबा' करना सामान्य वृत्ति है, स्वयं के संतापों पर मुस्कुराना या हँसना दार्शनिक वृत्ति है किन्तु दूसरों की पीड़ा या पराजय पर हँसना हास्य का शिष्ट रूप नहीं |

प्रतियोगिता में प्रतिवादी को हारते देख या शत्रु को रणभूमि में पराजित होते देख उसमें अपने पक्ष के लोगों की आह्लादात्मक ध्वनियाँ भी एक सीमा तक शिष्टाशिष्ट दायरे से बाहर रखी जाती हैं ये तो मात्र उत्साहवर्धन का आनंद द्योतित रूप होती हैं | 

इस तरह 'होली' शब्द का ध्वन्यात्मक अर्थ स्पष्ट है :
ह+ओ+ल+ई (संताप प्रदर्शक ध्वनि + ध्यानाकर्षक ध्वनि + आह्लाद द्योतक + तीव्रता सूचक ध्वनि) 

होली पर्व पर प्रायः "होली हैSS, होली हैSS" ... का स्वर ... रंग उड़ाते, रंग लगाते, रंग मलते, रंग घोलते आदि आदि करते समय सुना जा सकता है |

होली पर व्यक्ति कर कुछ भी रहा हो मूलतः वह अपने मनस्ताप और शारीरिक तापों को दूर कर देना चाहता है. "होली है, होली हैSS,होली हैSS" की गूँज ... संतापों का हरण करने में सहायक है |

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

तनाव की तपन

कविता ने है कर दिया 
मेरा कंठ अवरुद्ध. 
भ्रष्ट राग गाता फिरा 
नहीं हुआ कुछ शुद्ध. 

नहीं हुआ कुछ शुद्ध 
तनाव की तपन झुलसता. 
सत्य सूर्य को आज़ 
भ्रष्ट बादल भी ग्रसता. 

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