शुक्रवार, 6 मई 2011

परशुराम-स्तुति

अक्षय तृतीया पर विशेष प्रस्तुति  

 [१]
नयन करुणा समम दृष्टि
सौम्यता मुख प्रेम वृष्टि
ब्रह्म तेजस निःसृती इव
....................... गंधित कमले [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[2]
युद्ध विद सम्पूर्ण सज्जित
रुद्र उर आक्रोश मज्जित
परशु पाश कृपाण सायक
....................... शंख चक्र धरे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]


[३]
भयं शोकं मनस्तापम
काम क्रोधं च दुष्पापम
सकल जन मन ग्रंथियों पर
....................... चलाता फरसे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[४]
जमद'ग्नि सुत, राम बालक
पिता आज्ञा वचन पालक
गंध मादन पर अहर्निश
....................... शिव तपस्य करे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[५]
शिव ह्रदय तप से द्रवित कर
दिव्य अस्त्र समग्र लेकर
प्राप्त ज्ञान प्रयोग सबका
....................... कर लिया शिव से [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[६]
मुक्त कर ला, काम धेनुक
शीर्ष हत कर मात रेणुक
पिता आज्ञा, मांग वर से
....................... पुनः जीवन दे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[७]
अपहरण महिषा विमर्दन
लूट चोरी अनीति वर्द्धन
सहस्रबाहु संग सारे
....................... इति हुए जड़ से [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[८]
अश्वमेधी यज्ञ में त्वम्
त्यागते सम्पूर्ण राज्यं
चल दिए उत्कल जलाशय
....................... गिरी महेंद्र वसे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[९]
सिय स्वयंवर समय शिंजिनी
चढ़ गयी धनु राम, कंजनी
देख लोचन, तेज विष्णु
....................... राम को देते [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[१०]
वाच नारद विश्व के हित
प्रभो.! दत्तात्रेय संचित
त्रिपुर सुन्दरि मंत्र जप से
....................... शक्ति लब्ध करे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[११]
द्रोण परशुराम शिष्यं
तक्र वत कुरु-मूल शून्यं
विवशतावश नय विपक्षी
....................... पक्ष किन्तु लड़े [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[१२]
गुरु गदा बलराम अभयम
कर्ण शिष्यं 'ब्रह्म' वदयम
भीष्म ने भी शिष्य बनकर
....................... दिव्य अस्त्र वरे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[१३]
दीन रक्षक दुष्ट घातक
नष्ट करते सकल पातक
नींव धरकर विश्व में तुम
....................... प्रजातंत्र तरे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी..ययी]
....................... परशुराम नमे [यययी]

[अखिल भारतीय ब्राहमण सेवासंघ के विशेष आग्रह पर प्राचारार्थ]

यह स्तुति गीति शैली में होने से टेक के रूप में 'यययी..ययी' [निरर्थक शब्द] सहारे के लिए प्रयोग में लाया गया है. इसका कोई अर्थ नहीं है.
उवाच में एक 'उ' मात्रा अखर रही है सो उसे आप उ को स्पर्श करते हुए केवल 'वाच' ही पढ़ें.

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