गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

गोबर का कमाल

आधा गाँव
— आधा शहर
घूमें ढोर
— आठों पहर.

डाले बाँह
— हो निडर.
बाँहों में
— बेखबर.

सुबह शाम
— सड़कों पर.
घूमें हैं
— वधु-वर.

निकला बाजू
— ट्रक होकर.
उछला "छप्प्प"
— से गोबर.

[उड़न तश्तरी पर सवार श्रीमान समीर लाल जी को समर्पित]
समीर सर से एक प्रश्न: यदि कहीं कुछ लिखा जाता है तो बिना प्रभाव पड़े क्या रहा जा सकता है? यदि गोबर "उछाल पद्धति" से खुद पर आ गिरे तो कोई प्रतिक्रिया क्या आप नहीं देंगे?

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नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.