बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

आखिरकार

आखिरकार
बेचारे की शादी
नाईयों में ही हुयी।

जान गए लोग
अपनी कोलोनी का 'शर्मा'
रिश्तेदारों को
'शर्मा' बताने में शर्माता था
' उसके लड़के ने
मेरे साथ ही इंटर किया है'।
कभी दिया था उसने
ज़ोरदार भाषण
उखाड़ी थी बखिया
पंडितों द्वारा
बनायी वर्णव्यवस्था की।
और मिला था उसको
"प्रथम पुरस्कार"।

आज
लड़ नहीं सकता वो
समाज की वर्णव्यवस्था से
कभी
प्रेम विवाह का
प्रबल समर्थक था
फिर भी
उच्च वर्ण की कन्या से
'प्रेम करने से'
झिझकता था।

अनजाने ही हो बैठा
'प्यार' उसको
एक शर्माती कन्या से
जो 'शर्मा' थी।
कल्पना ने उसको
हिम्मत दिलायी थी।
संघर्ष अधिक उसको
करना नहीं पड़ा
सहर्ष स्वीकारा था
कन्या के पापा ने
'समधी'
बने थे दोनों के पापा।

इधर लड़के के 'मौसा' ने
उधर लड़की की 'चाची' ने
रिश्तेदारों में
मचाया था हल्ला —
"अपनों में शादी नहीं की भाई,
ओ गोलू की मम्मी,
ओ हड्डू की तायी।"

प्रेम विवाह से
दोनों सुखी थे
अनजान रहकर।

पर,
दुर्भाग्य उनका
निकले वे दोनों ही
जाति से 'नाई'।
तब से
भयंकर, होती लड़ाई ।

(वैसे जातीय हीनता और श्रेष्ठता की भावना अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुयी है। इस कारण, सामाजिक तोर पर दुराव-छुपाव आज भी देखने में मिलता है जो हास्यास्पद स्थितियों को जन्म देता है।)

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

आत्मघात

उन्होंने काम किया
बड़ी तेज़ी से किया
दस दिन का काम दो दिन में ख़त्म किया
आज वो सुखी हैं – हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं ।

काम करते हुए लोगों को देख मन ही मन दुखी हैं
कि – "इनका काम कब ख़त्म होगा"

मेहनतकश गधे पर यदि एक दिन
बोझा न रखा जाए तो बिदक जाता है
इधर-उधर चरता घूमता है,
अपने से दूसरे गधे भाइयों से मिलता है,
हाल-चाल पूछता है,
उसे बातचीत के दौरान दुलत्तियों का इस्तेमाल सूझता है ।

काम का निरंतर बने रहना कितना ज़रूरी है
नहीं तो कोई भी मेहनतकश
काम की ग़ैर-मौजूदगी में पगला जाएगा
ईडियट होकर घूमेगा
ईडियट्स के बीच बैठेगा
ईडियटटी करेगा
और अच्छे-बुरे की पहचान खोकर
कथित बुद्धिजीविता के मोटे-चश्मे से
थ्री-ईडियट्स देखने का दंभ भरेगा
देखकर सराहेगा
वाहियात चीज़ों पर मुस्कराएगा
फिल्म का बेसिक मैसेज भूल जाएगा
फिल्म में परोसे फूहडपने को दिल खोलकर अपनाएगा
अमर्यादित होती जा रही भारतीय संस्कृति के कलेजे पर
हाथ रखकर चिल्लाएगा – "ऑल इज़ वेल "

(सभी नयी सोच अपनाने वालों को समर्पित)

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

पशु

यदि पशु न होता
तो पशुता न होती
पशुता न होती तो मन शांत होता
मन शांत होता, क्या रति भाव होता
रति भाव से ही तो सृष्टि बनी है
रति भाव में भी तो पशुता छिपी है
है पशुता ही मनुष्य को मनुष्य बनाती
वरना मनुष्य देव की योनि पाता
अमैथुन कहाता, अहिंसक कहाता
तब सृष्टि की कल्पना भी न होती
संसार संसार होने न पाता
होता यहाँ भी शून्य केवल
अतः पशु से ही संसार संभव।

(तार्किक मित्र दीपचंद पाण्डेय को समर्पित)

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

जीवन नौका

यौवन सरिता में उतर पड़ी
वर-वधु की अब जीवन नौका
मिलकर वे होते हैं सवार
कौशल दिखलाने का मौक़ा।

डोलेगी नौका इधर-उधर
आयेगा दुःख पीड़ा-झोंका
संतुलन बिगड़ न जाए कहीं
दौर है रस-क्रीडाओं का।

(प्रिय साथी कृष्णा एवं सस्मीता जी के विवाह के उपलक्ष्य पर)

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

स्नेह भर दो

आ रहे जितने निकट तुम किन्तु उतनी दूर।

प्रिय मिलन की चाह लेकर
मैं तुम्हें जब ध्यान लाता
विरस मन से स्मृति पट पर
किरण रेखा खींच पाता।
बिखर जाते तब अचानक स्वप्न होकर चूर।
आ रहे जितने निकट तुम किन्तु उतनी दूर।

होती हृदय में कसक पीड़ा और कम्पन
धूसरित हो रो रहा है नयन दर्पण
प्रेम बंधन थाम लो तुम हो लिया मजबूर।
आ रहे जितने निकट रहे तुम किन्तु उतनी दूर।

जब प्रेम वायु प्रेम पत्रों को हिलाती
आशा किरण दे लोरियां झूला झुलाती
टिमटिमाते दीप में स्नेह भर दो, रो लिया भर पूर।
आ रहे जितने निकट तुम किन्तु उतनी दूर॥

(सनातन मित्र संजय राजहंस को समर्पित)

मेरे पाठक मेरे आलोचक

Kavya Therapy

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.