सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

पशु

यदि पशु न होता
तो पशुता न होती
पशुता न होती तो मन शांत होता
मन शांत होता, क्या रति भाव होता
रति भाव से ही तो सृष्टि बनी है
रति भाव में भी तो पशुता छिपी है
है पशुता ही मनुष्य को मनुष्य बनाती
वरना मनुष्य देव की योनि पाता
अमैथुन कहाता, अहिंसक कहाता
तब सृष्टि की कल्पना भी न होती
संसार संसार होने न पाता
होता यहाँ भी शून्य केवल
अतः पशु से ही संसार संभव।

(तार्किक मित्र दीपचंद पाण्डेय को समर्पित)

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