शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

आत्मघात

उन्होंने काम किया
बड़ी तेज़ी से किया
दस दिन का काम दो दिन में ख़त्म किया
आज वो सुखी हैं – हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं ।

काम करते हुए लोगों को देख मन ही मन दुखी हैं
कि – "इनका काम कब ख़त्म होगा"

मेहनतकश गधे पर यदि एक दिन
बोझा न रखा जाए तो बिदक जाता है
इधर-उधर चरता घूमता है,
अपने से दूसरे गधे भाइयों से मिलता है,
हाल-चाल पूछता है,
उसे बातचीत के दौरान दुलत्तियों का इस्तेमाल सूझता है ।

काम का निरंतर बने रहना कितना ज़रूरी है
नहीं तो कोई भी मेहनतकश
काम की ग़ैर-मौजूदगी में पगला जाएगा
ईडियट होकर घूमेगा
ईडियट्स के बीच बैठेगा
ईडियटटी करेगा
और अच्छे-बुरे की पहचान खोकर
कथित बुद्धिजीविता के मोटे-चश्मे से
थ्री-ईडियट्स देखने का दंभ भरेगा
देखकर सराहेगा
वाहियात चीज़ों पर मुस्कराएगा
फिल्म का बेसिक मैसेज भूल जाएगा
फिल्म में परोसे फूहडपने को दिल खोलकर अपनाएगा
अमर्यादित होती जा रही भारतीय संस्कृति के कलेजे पर
हाथ रखकर चिल्लाएगा – "ऑल इज़ वेल "

(सभी नयी सोच अपनाने वालों को समर्पित)

1 टिप्पणी:

  1. when i first read the brief i thought it is a something you have written in prose but it turned out to be poetry. there is a flow in your poety now. passing years have given you matuariy which reflects in your work. now you have turned deep from pratul. (deep matlab gahara hindi me bolen to). There is one more thing i want with the poems.You should also give a brief account of the circumstance when you write your poem or the thoughts which inspires you to take up the kalam(pen) and write.

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