रविवार, 9 अप्रैल 2023

दिखते हैं


[1]  
सब्जबाग अब भी ज्यों के त्यों दिखते हैं।
सपने मिथ्या राम राज के दिखलाते वे दिखते हैं।

[2] 
वे कुछ चोरी-चोरी लाते-ले जाते।
चौकीदार चतुर प्रहरी क्यों सोते सोते दिखते हैं।

[3] 
ना है घुसा हुआ कोई, ना है कब्जा।
स्टेचू ओफ यूनिटी के कंधे पर वे क्यों दिखते हैं।

[4] 
न्याय मिलेगा संविधान के मंदिर में 
लिए तराजू बैठे लेकिन खोंखोंई क्यों दिखते हैं।

[5] 
हामिद मेले में आकर चिमटा ढ़ूँढ़े।
मगर उसे तो सभी खिलौने चीनी चीनी दिखते हैं।

[6] 
दो हजार दो से पहले की है यारी
देखो तो वे अब आकर गुरबान पकड़ते दिखते हैं।

[7] 
कानून के लंबे होते हैं हाथ - सुना।
मगर लफंगे कातिल उसकी बगल तले क्यों दिखते हैं।

[8] 
नहीं कहीं मँहगाई है, ना बेकारी।
हर तरफ कंजूस और आवारा ही बस दिखते हैं।

[9] 
सोच रहा है बीज कभी होगा उद्भव
बिन ज़मीन पानी के बरसों बंद लिफाफे दिखते हैं।


[ खोंखोंई - बंदर ]

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मेरे पाठक मेरे आलोचक

Kavya Therapy

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.