रविवार, 30 जनवरी 2011

प्रेम नहीं प्रतिउत्तर चाहे


मुझे पता है नहीं मिलेगा 
मुझको कोई पुरस्कार.  
इसीलिए मन के दर्पण का 
करता हूँ ना तिरस्कार. 

जैसा लगता कह देता हूँ 
कटु तिक्त मीठा उदगार.
मित्रों को भी नहीं चूकता 
तुला-तर्क वाला व्यवहार.  

मुझको बंधन वही प्रिय है 
जो भार होकर आभार. 
प्रेम नहीं प्रतिउत्तर चाहे  
मिले यदि, 'जूते' स्वीकार. 


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नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.