बुधवार, 10 जनवरी 2018

अजी हाँ !!

कवियों की प्राय: जो कवितायेँ देखने-सुनने में आती हैं, वे या तो वस्तुस्थिति को बयाँ करती हैं या वे आदर्श की कल्पना करती हैं। उनमें या तो विरोध द्वारा सुधार के स्वर समाहित होते हैं या फिर समर्थन द्वारा प्रशस्ति के। दोनों का ही महत्व है। प्रोत्साहन के लिए समर्थन तो सुधार के लिए सकारात्मक विरोध का भी। प्रस्तुत कविता सत्ता और विपक्ष दोनों पर कटाक्ष करती है।


मेरे प्यारे युवा साथियो!
बदल गया है कामकाज का अब सरकारी ढर्रा
पहले काम नहीं होता जो अब होता है सर्रा
गिद्धराज ने कहा है- "मित्रो, दिन हैं बेहद अच्छे"
"मानो या ना मानो लेकिन डरें वराही बच्चे"
"सच है सच है सच है सच है"
कौवे करते ' काँ' ____________________ अजी हाँ!


मेरे पिछड़े दलित गरीब भाइयो!
अब अमीर होने में होगा बेहद जोखिम ख़तरा
बैंक सभी आधार जुड़ गए खुले सभी के पतरा
लक्ष्मीवाहक गढ़ा खजाना उड़-उड़ पूछ रहे हैं
साँप नेवलों के बिल में घुस जन धन ढूँढ़ रहे हैं
"बच गई, बच गई, बच गई, बच गई"
सब भूखों की 'जां' _________________ अजी हाँ!


मेरे सवा करोड़ देशवासियो!
थर-थर काँप रहा है दुश्मन ठंड न समझो कारण
अभी-अभी है किया फौज ने देशभक्ति को धारण
कुत्तों ने छिप करके अपना शेर शिकार किया है
दहाड़-दहाड़ के बब्बर ने फिर बदला खूब लिया है
याद कर रहा दुश्मन अपनी
खाला-फूफी-माँ ____________________ अजी हाँ!


मेरे सम्मानित जागरूक मतदाताओ!
अब समाज में ऊँचा-नीचा, छोटा-बड़ा न होगा
नीला काला हरा बसंती पहनो जो भी चोगा
बहुरंगी है देश हमारा अलग-अलग हैं फैशन
एक व्यक्ति में दिखें सभी ये शासक वो ही नैशन
दिखे हमेशा चौड़ा सीना
लगना चहिए 'ठां' __________________ अजी हाँ!


मेरे गाँव देहात की माताओ-बहनो!
घर से बाहर बाबाओं का जाल बिछा है भारी
कोई सीधा स्वर्ग दिखाता कोई शुद्ध व्यापारी
तीन धमकियों से डरने का अब युग बीत गया है
अबला ने धर लिया चण्डि का फिर से रूप नया है
एक साथ मिल बोलो सारी
"हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ" __________________ अजी हाँ!

मेरे पाठक मेरे आलोचक

Kavya Therapy

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.