होली पीछे गयी .. रंग की
आयी है ... 'उतरन होली'.
रंगे हुए सियारों की अब
सुन लो 'हुआ-हुआ' बोली.
"मेरे अनशन ने दिलवाया
भूखों को .. खाना भरपेट.
पर 'सुभाष' ने खून माँगकर*
खुलवाया .. हिंसा का गेट."
"मेरे ... बन्दर बँटवारे ने
रोकी .. छीना-झपटी कैट.
पर .. 'नाथू' लंगूर भगाता
पार .. 'राम नाम' के गेट."*
"मेरे .. 'हरिजन' संबोधन ने
दी दलितों को बिग नेम-प्लेट.
'भीमराव जी' फिर भी घूमे
'अम्बेडकर' का नाम लपेट."*
"वैष्णवजन तो तैने कहिये
'शैतानों' को ... दे भरपेट.
उनको दुश्मन कहो देश का
जो रहते हैं 'आउट ऑफ़ डेट."