शारीरिक स्वास्थ्य के लिए, उसे निरोगी रखने के लिए आज विश्व 'योग दिवस' के बहाने से अपनी सजगता दिखा रहा है। अब तब न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में कई तरह की पैथीज़ एवं थैरेपीज़ प्रयोग में लाई जा रही थीं और अब स्वास्थ्य जागरूकता की सनातन विधि के द्वारा एक नवीन क्रान्ति को जन्म दे दिया है।अष्टांग योग के मात्र दो भाग 'आसन और प्राणायाम' द्वारा ही लोग योग के महात्म्य को समझने लगे हैं। इसी सन्दर्भ में 'काव्य' को मैं योग से पृथक नहीं देख पा रहा हूँ।
जब कोई बड़ा समारोह होता है विभिन्न कार्यक्रम होते हैं और दूर-दूर से आये लोग अपनी-अपनी प्रस्तुतियाँ देते हैं और कुछ विक्रेता अपनी दुकानें भी सजाते हैं। उसी से कोई कार्यक्रम बड़ा समारोह का रूप ले पाता है।
विश्व योग दिवस से पहले ही मैं भी 'काव्य थेरेपी' की एक छोटी प्रस्तुति दे रहा हूँ।
जब कोई बड़ा समारोह होता है विभिन्न कार्यक्रम होते हैं और दूर-दूर से आये लोग अपनी-अपनी प्रस्तुतियाँ देते हैं और कुछ विक्रेता अपनी दुकानें भी सजाते हैं। उसी से कोई कार्यक्रम बड़ा समारोह का रूप ले पाता है।
विश्व योग दिवस से पहले ही मैं भी 'काव्य थेरेपी' की एक छोटी प्रस्तुति दे रहा हूँ।
आपके मन में उठने वाले स्वाभाविक प्रश्न :
- काव्य थेरेपी क्या है?
- कविता के द्वारा चिकित्सा या रोग से मुक्ति दिलाना कैसे संभव है?
- क्या ये कोरी बकवास है?
- क्या इसके द्वारा रोगी के ठीक होने के प्रमाण हैं?
- क्या इसका वैज्ञानिक / तार्किक आधार है?
मेरा प्रयास संक्षेप में इन प्रश्नों के उत्तर देने का रहेगा :
आज की जीवन पद्धति तनाव ही तनाव देती है। रोज़गार न मिलने से तनाव, मिल जाए तो मन मुताबिक न मिलने से तनाव, समय पर परमोशन या इन्क्रीमेंट न न मिलने से तनाव, मिले तब भी तनाव कि कम मिला; वर्कलोड आदि-आदि।
आज की जीवन पद्धति तनाव ही तनाव देती है। रोज़गार न मिलने से तनाव, मिल जाए तो मन मुताबिक न मिलने से तनाव, समय पर परमोशन या इन्क्रीमेंट न न मिलने से तनाव, मिले तब भी तनाव कि कम मिला; वर्कलोड आदि-आदि।
आज का व्यक्ति :
- आज के व्यक्ति ने हर हाल में तनावग्रस्त रहना सीख लिया है।
- खुश रहना उसने कम कर दिया है।
- खुश रहने का मतलब वह हँसना खिल खिलाना समझता है और वैसी कोशिशें करता है।
- तनाव रोग का मूल है।
- सल्बतों वाला कपड़ा जल्दी फटता है।
कविता तनाव समाप्त करती है।
चिकित्सा क्षेत्र में बहुत पहले महर्षि सुश्रुत, महर्षि चरक और नागार्जुन हुए जिन्होंने क्रमशः शल्य चिकित्सा, औषधीय चिकित्सा एवं भस्म चिकित्सा का आविष्कार किया। किन्तु तब भी असाध्य बीमारियों के लिए काव्य चिकित्सा की जाती थी।
काव्य के छह प्रयोजनों में एक प्रयोजन असाध्य बीमारियों से छुटकारे का भी है।
कवियों ने असाध्य रोगों के लिए स्वयं पर परीक्षण किए :
- कवि मयूर ने कुष्ठ रोग दूर किया सूर्य स्तुति द्वारा।
- कवि तुलसी ने बाहू पीड़ा दूर की हनुमानबाहुक लिख कर।
कविता के प्रतिकूल परिणाम भी काफी देखने में आयें हैं। इसलिए सावधानी बरती जाती थी।
- कवि प्रसाद को प्रतिकूल परिणाम भोगना पड़ा।
- दग्धाक्षर से प्रारम्भ होने वाले काव्य स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते रहे।
- कवि बिहारी ने राजा जयसिंह की काव्य चिकित्सा की एक दोहे के द्वारा।
- राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत कवितायें आलस्य और प्रमाद निवारण के लिए अच्छी मानी जाती रही हैं।
- भोगी जीवन रोगी जीवन हो जाता है।
इसकी चिकित्सा काव्य थेरेपी के पास है।
अच्छी कवितायें लिखे
लिखे नहीं तो सुनें
सुनें नहीं तो पढ़े
इंग्लेंड के विज्ञानिकों को एक शोध में पता चला हैं कि कविता कराने वाले को तनाव नहीं होता इसलिए हर व्यक्ति को कविता करने की सलाह भी देते हैं।
कविता हमारे तनावों का विरेचन है।
शारीरिक उत्सर्जन से भी आराम मिलता है। स्वास्थ्य लाभ होता है। मतलब -
हँसना, रोना, छींकना, खाँसना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है लेकिन संतुलित मात्रा में ही।
- हंसने से पेट को
- रोने से आँखों को
- छींकने से मांसपेशियों को
- खाँसने से ग्रंथियों को व्यायाम मिलता है।
शरीर के रोम-रोम को व्यायाम देने के दो रास्ते हैं-
१) शीतल स्नान और
२) भाव उत्तेजक कविता पाठ
२) भाव उत्तेजक कविता पाठ
शरीर को व्यायाम देना मतलब
सक्रिय रखना मतलब स्वस्थ रखना