कोई कर दे तर्क से मुझको पराजित.
साक्ष्य संचित कर मुझे नीचा दिखाये.
फिर भी अपने गुरुजनों के पास जाकर
पक्ष-स्व मज़बूत करना सोचता हूँ.
कोई भद्दे भाव की करके बुनावट.
बहस करने को मुझे घर पर बुलाये.
मौन रहता कायरों की भाँति तब तक
गालियों की बिछी चादर हट न जाये.
आज़ अपने ही मुझे कहते कुपोषित.
मानते हैं वे मुझे शय्या-पसंदी.
फटकार पर भी मैं उन्हें बेअसर दिखता
सुधरती है नहीं आदत मेरी गंदी.
विद्वता के सामने मैं झुक भी जाऊँ.
कुतर्कियों से हाथ दो-दो आजमाऊँ.
पर हमेशा भाग जाता पीठ दिखला
जहाँ भाषा भील बनकर नाच करती.