'मुझको वञ्चित'
---------- किया सो किया।
'था जो सञ्चित'
---------- दिया सो दिया।
कर ली तेरी हर विधि पूजा।
जबरदस्ती खुश होकर जिया।।
'सुख था किञ्चित'
---------- मृग मरीचिका।
'बतरस सिञ्चित'
---------- दृग यवन्निका*।
है तेरा अन्याय सुरक्षित।
सुख देकर दुःख अधिक दे दिया।।
'अमित प्रवंचित'
---------- हुआ क्यों हुआ?
'भौमिक स्वर मित'
---------- हुआ क्यों हुआ?
करुणानिधान कह कह तुमको
चिकना मैंने घड़ा कर दिया।।
_____________________
* दृग यवन्निका = दृग यवनिका [पलकें]
यवनिका = रंगमंच का परदा.
मैं जानना चाहता हूँ कि "क्या अंतर की अत्यंत सूक्ष्म अनुभूति का स्वर बिना कानों वाला, बिना हृदय वाला... निराकार परमात्मा सुनता है या नहीं ?"
सर्व प्रथम तो ईश्वर, मानवीय कल्पनाओ से भिन्न, मानव व्यवहार से अभिन्न, एक सिस्टम हो सकता है, शायद इसी लिये उसे निराकार कहा गया हो।
जवाब देंहटाएंउसके ज्ञान के समक्ष इन्द्रिय सामर्थ्य तो कुछ भी नहीं।
उसका सिस्टम अचुक और न्यायपूर्ण क्रियाशील रहता है। हमें पता नहीं क्यों तालावेली लगी रहती है कि वह सिस्टम सही काम कर रहा है अथवा नहीं?
इस जानने की जिज्ञासा में मुझे तो अपनी ही बदमाशी नज़र आती है, हम यह निश्चित कर लेना चाहते है कि माया और चिंटिंग से दिखाए सद्गुण की चीट उसका सिस्टम पकड पाता है या नहीं। अगर ऐसा भ्रम चल जाय तो सार्थक पुरूषार्थ कौन करे।
बस इसी परिपेक्ष्य में वह चिकना घडा है। :)
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंआप भाव के भीतर तक प्रविष्ट हो जाते हैं. आप इस कविता का दार्शनिक पक्ष उजागर कर रहे हैं.
क्योंकि ये कविता अमित जी और उनके बेटे 'भौमिक' से जुडी हुई है इसलिए इसका भौतिक पक्ष अमित जी ही समझ सकते हैं.
उनके समस्त कष्ट ईश्वर दूर करे ...... यह प्रार्थना करता हूँ लेकिन ईश्वर तो चिकना घड़ा हो गया है. मैं बेकार उसकी खुशामद में उसे करुणानिधान कहता घूमता रहा.
आपके आशीर्वाद के अभिलाषी हैं हम तो .............. और वह निरंतर मिलता है इसका प्रमाण यह पंक्तियाँ हैं, जिनसे पता लगता है की आप निरंतर मेरे हितचिंतन में रहतें है.......... बेटे का एक आपरेशन ठीक से हो चुका है, दूसरा दो महीने के अन्तराल पर होगा जगह अभी निश्चित नहीं है की जयपुर में ही होगा या दिल्ली में होगा ............... मेरे हाथ की सर्जरी कल होगी. यह सब आपके आशीर्वाद और उस करुणानिधान के निश्चित विधान से सानंद निबट जायेगा :) .............. आपने सही कहा वह करुनानिधान वास्तव में ही चिकना घड़ा है उस पर किसी मनौती का कोई असर नहीं होता है ................ हमारे कर्मफल को बिना किसी पक्षपात के हम तक पहुंचता है , उस करुणानिधान की करुणा इस रूप में महसूस करनी चाहिये की संचित कर्मफल को भोगते समय हम नवीन कर्म में सद-असद के अंतर को पहचान सकें इसका विवेक वह करुणा करके हमें प्रदान करें .
जवाब देंहटाएंभैमिक के लिये शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंक्षमा करें, यह मंगल प्रार्थना भाव थे भौमिक के लिये, ध्यान ही न गया, अन्यथा दर्शन प्रवाह में न बहता।
अमित जी इन कठीन पलों में मैं आपके साथ हूँ।
भौमिक शीघ्र सर्वांग स्वस्थ होगा, मेरी शुभकामनाएँ
प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंइस बे-ध्यान की चुक के कारण अपराध-बोध से आहत हूँ। मैं अपने अभिन्न मित्र की सम्वेदनाओं तक न पहुँचा।
इस विषय पर ही मेरे लेख चल रहे थे सो उसी रो में बह गया।
भौमिक के लिये पुनः पुनः मंगल प्रार्थना!! वह शीघ्र स्वस्थ हो।
सुन्दर...
जवाब देंहटाएंप्रतुल भाई,
जवाब देंहटाएंअमित और भैमिक के लिये आपकी संवेदना और उस पर अमित की टिप्पणी पढ़कर कैसा अच्छा लगा, बता नहीं सकता।
शुभकामनायें सबको।