मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

ज़्यादा फेरे नहीं लगाओ


परिणय की इस वर्षगाँठ पर 
गृहस्थी की ग्रंथी सुलझाओ. 
अमित और दिव्या शर्मा जी 
ज़्यादा फेरे नहीं लगाओ. 

उलझ रही हैं आज़ स्वयं में 
जो भी बातें यहीं भुलाओ. 
प्रेम और विश्वास जताने 
ज़्यादा फेरे नहीं लगाओ. 

संतोष परम धन कहते साधु 
आशा का कुछ अंत न पाओ. 
एक और व्यापार जमाने 
ज़्यादा फेरे नहीं लगाओ. 

कभी बुलाओ अपने घर पर 
और कभी खुद आओ-जाओ. 
परिणय की इस वर्षगाँठ पर 
ज़्यादा फेरे नहीं लगाओ. 

[अमित शर्मा जी की विवाह वर्षगाँठ पर एक मनोविनोद पूर्ण कविता.]

2 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार विनोदी शुभकामनाएँ दी है।:))

    हमारी तो इस दम्पती के सारे फेरों को शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  2. आभार आपका प्रतुलजी !
    आपके आशीष की ताकत से जीवन की हर कठिनाई से पार पाने में सरलता होगी

    जवाब देंहटाएं

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नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.