नकद निकालने की चाहत में बैंक से खाली हाथ लौटकर आने वाले
का दर्द बयाँ करती है मेरी ये कविता —
आज़ तुम पैसा न दो, न दो।
कल भी मैं माँगूँगा
तुम बैंक हो, दाता हो
मेरे क्रेडिट डेबिट का
हिसाब रखने वाले कलयुगी चित्रगुप्त !
मेरी जरूरत पर मेरा ही पैसा मुझे मत दो, मत दो।
केवल कुबेर, शाहों की तिजोरियों से निभाओ रिश्ता
मानते रहो 'यम की बात'।
ओ खाताधारियों के बूँद-बूँद जमा किये पैसों से बने विशाल छत्ते !
अपनी एटीएम मशीन खाली रखो, रखो ।
मैं अपनी फैमिली के दो-दो खातों में
दिवंगत सीनियर नोटों का
एक और छत्ता लगा जाउँगा।
स्थिति सामान्य होने को
माँगो तुम चाहे जो
50
दिन,
100 दिन,
365 दिन,
दूँगा
तुम दोगे जो … सहूँगा।
आज नहीं कल सही
कल नहीं साल बाद
सही
मेरा तो नहीं है
कुछ
सब कुछ आपका है
मेरी जमापूँजी, मेरा घर
मेरा भूखा पेट, मेरा सर।
ओ वित्त-व्यवस्था के
मुख्य प्रबंधक !
रिज़र्व बैंक के जनसभा
प्रवक्ता !
ग्राहक-दुकानदारों को लालचभरी स्कीमों से रिझाने वाले
कुशल बनिये !
बातें मत बनाइये, जल्दी से ... संतुलन बनाइये
बदलाव के प्रवर्तक, ‘एकला चलो रे’ नहीं गाते
इतिहास से लेते हैं सीख
न कि अपनी कमियाँ छिपाने को
ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को आरोपित करते हैं।
ओ मन की बात के मंथली बुलेटिन !
मनी यहाँ, कहाँ कुछ है
मनमानी यहाँ सब कुछ है
मेरे धैर्य की पराकाष्ठा
मेरे मुख की उबकाई
मेरी प्राणवमन घुटी
- मैं तुम्हें पहचान गया हूँ।
तुम्हीं ने बनाया
है मुझे मनीमक्खी
तुम्हीं ने लगाया
है मुझे कतार में।
‘आर्तनाद’, ‘चीख-पुकारें’
आपके चिल्लाहट भरे संबोधन-हुँकारों के समक्ष
घुटने टेक रही हैं।
आपका काला नोट’बंदी भैंसा
कतार में हुए शहीदों की लाशों पर ताण्डव कर रहा है।
ओ आत्ममुग्धता में सरोबार चमचमाते लोहपुरुष !
मैं आपकी भाग-दौड़, तंदरुस्ती का कायल हूँ
लेकिन अचानक हुए इस गोरिल्ला हमले में
सबके साथ घायल हूँ।
वीर तो बताकर हमला करते हैं।
देश के दुश्मनों से टक्कर लेने को क्या
दहशतगर्दों वाले तरीके अपनाओगे !
चोरों के भीड़ में लापता होने पर
क्या भीड़ पर कोड़े बरसाओगे !
देसी-विदेशी अभिनंदन समारोहों के गोल्ड मेडलिस्ट !
अचीवमेण्ट्स को गिनाने वाले स्टोरीटेलर !
आज तुम पैसा न दो, न दो
कल भी मैं माँगूँगा।
[ चित्र : गूगल से साभार ]
[ चित्र : गूगल से साभार ]
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