मंगलवार, 22 मार्च 2011

उतरन होली

होली पीछे गयी .. रंग की 
आयी है ... 'उतरन होली'. 
रंगे हुए सियारों की अब 
सुन लो 'हुआ-हुआ' बोली.

"मेरे अनशन ने दिलवाया 
भूखों को .. खाना भरपेट. 
पर 'सुभाष' ने खून माँगकर* 
खुलवाया .. हिंसा का गेट." 

"मेरे ... बन्दर बँटवारे ने 
रोकी .. छीना-झपटी कैट.
पर .. 'नाथू' लंगूर भगाता 
पार .. 'राम नाम' के गेट."*

"मेरे .. 'हरिजन' संबोधन ने 
दी दलितों को बिग नेम-प्लेट. 
'भीमराव जी' फिर भी घूमे 
'अम्बेडकर' का नाम लपेट."*

"वैष्णवजन तो तैने कहिये 
'शैतानों' को ... दे भरपेट. 
उनको दुश्मन कहो देश का 
जो रहते हैं 'आउट ऑफ़ डेट." 



— खून माँगकर* -- 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा'
— .. 'राम नाम' के गेट -- 'राम नाम सत्य है' के द्वार पर अर्थात 'हे राम' उच्चार द्वार पर 
— भीमराव जी को उनके ब्राह्मण गुरु महादेव अम्बेडकर जी ने अपना नाम दिया था.  भीमराव जी ने भी अपने 'सकपाल' पैत्रिक नाम को हेय जानकार अपनी मानसिकता का परिचय दिया. या फिर कहें तात्कालिक परिस्थितियों के चलते ऐसा किया गया.

4 टिप्‍पणियां:

  1. अम्बेडकर, महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उग्र आलोचक थे. उनके समकालीनों और आधुनिक विद्वानों ने उनके महात्मा गांधी (जो कि पहले भारतीय नेता थे जिन्होने अस्पृश्यता और भेदभाव करने का मुद्दा सबसे पहले उठाया था) के विरोध की आलोचना है।

    गांधी का दर्शन भारत के पारंपरिक ग्रामीण जीवन के प्रति अधिक सकारात्मक, लेकिन रूमानी था, और उनका दृष्टिकोण अस्पृश्यों के प्रति भावनात्मक था उन्होने उन्हें हरिजन कह कर पुकारा। अम्बेडकर ने इस विशेषण को सिरे से अस्वीकार कर दिया। उन्होंने अपने अनुयायियों को गांव छोड़ कर शहर जाकर बसने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया।

    — Ye baat Wikipedia se uthaayii gayii hai. [http://hi.wikipedia.org/wiki/भीमराव_रामजी_आंबेडकर#]

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  2. सत्य तो यत्र तत्र बिखरा हुआ है , यदि कोई जानना चाहे तो। लेकिन अफ़सोस की हर कोई आँख मूंदे बैठे रहना चाहता है।

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  3. अम्बेडकर कुलनाम के बारे में नहीं पता था। ये तो ऐतिहासिक कविता हो गयी।

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