परिणय की इस वर्षगाँठ पर
गृहस्थी की ग्रंथी सुलझाओ.
अमित और दिव्या शर्मा जी
ज़्यादा फेरे नहीं लगाओ.
उलझ रही हैं आज़ स्वयं में
जो भी बातें यहीं भुलाओ.
प्रेम और विश्वास जताने
ज़्यादा फेरे नहीं लगाओ.
संतोष परम धन कहते साधु
आशा का कुछ अंत न पाओ.
एक और व्यापार जमाने
ज़्यादा फेरे नहीं लगाओ.
कभी बुलाओ अपने घर पर
और कभी खुद आओ-जाओ.
परिणय की इस वर्षगाँठ पर
ज़्यादा फेरे नहीं लगाओ.
[अमित शर्मा जी की विवाह वर्षगाँठ पर एक मनोविनोद पूर्ण कविता.]
शानदार विनोदी शुभकामनाएँ दी है।:))
जवाब देंहटाएंहमारी तो इस दम्पती के सारे फेरों को शुभकामनाएँ
आभार आपका प्रतुलजी !
जवाब देंहटाएंआपके आशीष की ताकत से जीवन की हर कठिनाई से पार पाने में सरलता होगी