कोई कर दे तर्क से मुझको पराजित.
साक्ष्य संचित कर मुझे नीचा दिखाये.
फिर भी अपने गुरुजनों के पास जाकर
पक्ष-स्व मज़बूत करना सोचता हूँ.
कोई भद्दे भाव की करके बुनावट.
बहस करने को मुझे घर पर बुलाये.
मौन रहता कायरों की भाँति तब तक
गालियों की बिछी चादर हट न जाये.
आज़ अपने ही मुझे कहते कुपोषित.
मानते हैं वे मुझे शय्या-पसंदी.
फटकार पर भी मैं उन्हें बेअसर दिखता
सुधरती है नहीं आदत मेरी गंदी.
विद्वता के सामने मैं झुक भी जाऊँ.
कुतर्कियों से हाथ दो-दो आजमाऊँ.
पर हमेशा भाग जाता पीठ दिखला
जहाँ भाषा भील बनकर नाच करती.
वाह!! सहज अभिव्यक्ति?
जवाब देंहटाएंजवलंत प्रश्न है हम सब के लिये………
अपशब्द युद्ध कैसे लड़ूँ?
विद्वता के सामने मैं झुक भी जाऊँ.
कुतर्कियों से हाथ दो-दो आजमाऊँ.
पर हमेशा भाग जाता पीठ दिखला
जहाँ भाषा भील बनकर नाच करती.