[मेरा है तो अच्छा है]
एक विचारक थे ठीक अमित शर्मा जी की ही तरह. पर वे वर्तमान अमित जी से दो कदम आगे की सोच के थे. वे मांसाहार करना बुरा नहीं मानते थे. वे केवल बलात्कार को बुरा समझते थे.
इसलिये उन्होंने इस दुष्कर्म पर प्रतिबंध लगाने को पुरजोर कोशिशें कीं. बलात्कार समर्थकों से बड़ी तार्किक बहस भी की. लेकिन वे उन्हें किसी भी तरह से समझा नहीं पाए.
बलात्कार समर्थक उसे अपने-अपने धर्मों का आधार कहते थे. वे सभी उस कृत्य को अपनी इच्छा न कहकर परमसत्ता की आज्ञा बताया करते थे. उन्होंने अपने-अपने सुन्दर तर्कों से कुरूप-सी परिभाषायें भी गढ़ लीं. अमित से दो कदम आगे चलने वाले उन सज्जन ने अपनी अंतिम कोशिश में अपने ब्लॉग पर दो वीडिओ लगाए.
पहला वीडिओ ......
स्त्री के साथ एकाकी दुष्कर्म का. और
दूसरा वीडिओ .....
अबोध कन्या के साथ सामूहिक दुष्कर्म का.
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विरोधियों और समर्थकों ने टिप्पणियाँ दीं :
१ ] प्रो. बाल की खाल —
आप सौहार्द भंग करने की कोशिश करते हैं जनाब. अपने शास्त्रों में देखिये कितने ही महापुरुषों ने यह सात्विक कार्य किया है
— रावण ने सीता का हरण किसलिये किया था. जबकि रावण एक वेद-विद्वान् और महापंडित था. [देखें : पंडित खर और दूषण द्वारा रचित 'रावायण', सात्विक बलात काण्ड, पृष्ठ ३-१३]
— द्रोपदी का चीर हरण करने वाले कौरव राजवंश के लोग थे जिनकी शक्ति के समक्ष पांडव भी अपना मुँह नहीं खोल पाए. [देखें : शिखंडी रचित महाभारत, चीर-हरण पर्व, पृष्ठ ९-२-११]
अतः आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप इस तरह इस परमसत्ता 'अगाओ' के नेक कर्म के प्रति बदनीयत भावनाएँ न भड़काएँ. यह आपके लिये भी अच्छा होगा. आप इस नेक राह पर चलेंगे तो जन्नत में हूरें आपका इंतज़ार करेंगी. ऐय्याशी को बुरा न ठहराएँ. आप जानते नहीं हैं कि ऐश्वर्य से ही ऐय्याशी बना है. थोड़ा समझदारी पूर्ण परिचय दें.
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अगाओ — 'अ' से अल्लाह; 'गा' से GOD, 'ओ' से ओउम
Time: 2:00AM, 24 November, 2010 Wednesday
Time: 2:00AM, 24 November, 2010 Wednesday
२] महाशय मासूम —
आपने इंसानियत से जुदा हरकत की है. आपको कोई हक़ नहीं कि सृष्टि चलाने वाले नियामक कर्म को ही बदनीयत करार दिया जाये. हम तो इस प्रक्रिया से अभ्यास करते हैं प्रजनन सबंधी क्रियाओं का.
Time: 2:40AM, 24 November, 2010 Wednesday
Time: 2:40AM, 24 November, 2010 Wednesday
३] बेनाम भाईजान —
आप खुद तो नामर्द हो कोई दूसरा मर्दानगी का परिचय देता है तो आपके गले नहीं उतरता.
Time: 4:30AM, 24 November, 2010 Wednesday
Time: 4:30AM, 24 November, 2010 Wednesday
४] भाई खूब कही —
आपने एकदम सही कहा.
Time: 5:31AM, 24 November, 2010 Wednesday
Time: 5:31AM, 24 November, 2010 Wednesday
५] मनोभाव-शून्य —
मुझे समझ नहीं आता कि आप इस तरह के मसलों को क्यों उठाते हैं. अरे यह तो व्यक्तिगत इच्छाएँ हैं. आपको गूगल में पोर्न साइट्स नहीं दिखायी देतीं वहाँ तो इस तरह के तमाम वीडिओ भरे पड़े हैं. आप इन दो वीडिओ पर ही हाय-तौबा मचाये हुए हो.
Time: 6:43AM, 24 November, 2010 Wednesday
Time: 6:43AM, 24 November, 2010 Wednesday
६] मौसम ठीक है —
मैं इस पर कुछ नहीं कहूँगा.
Time: 7:13AM, 24 November, 2010 Wednesday
Time: 7:13AM, 24 November, 2010 Wednesday
७] बिस्तर लगा है —
मुझे आपने सोचने पर मजबूर कर दिया है.
Time: 8:32AM, 24 November, 2010 Wednesday
Time: 8:32AM, 24 November, 2010 Wednesday
८] डॉ. मीनमेख
जब भी इस तरह की पोस्ट कोई मेरी नज़र से होकर गुजरती है. मैं उसे पसंद नहीं करता. आप ध्यान दें तो पायेंगे कि हर कहीं तो चीर खींचने में लगे हैं लोग.
एक शायर ने क्या खूब कहा है :
जब भी वे मिलने आते हैं मुझसे.
मेरा अंदरूनी मन उन्हें दबोच लेना चाहता है.
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आपने मेरी टिप्पणी पिछली बार मोडरेट कर दी थी.
आपसे टिप्पणी मोडरेट करने की उम्मीद अभी भी बरकरार है.
Time: 9:55AM, 24 November, 2010 Wednesday
९] टीन-कनस्तर
अच्छी प्रस्तुति.
मेरे ब्लॉग पर पधारें. लिंक : teenkanastar.blogspot.com/
Time: 11:32AM, 24 November, 2010 Wednesday
१०] डॉ. उत्तमौत्तम 'बिना-अंकुश'
मुझे आपसे कोई लेना-देना नहीं. आप जो कर रहे हैं मानव हित में है. इसलिये आप मेरे संगठन के आजीवन सदस्य बनें. आपमें जज्बा है इस जज्बे को ख़त्म न होने दें.
तुरंत कदम उठायें.
डॉ. उत्तमौत्तम 'बिना-अंकुश'
दलित-मोचन सेना
राष्ट्रीय अध्यक्ष, भारत
फोन : 000-00000000; फेक्स : 000-00000000
मोब: 00-0000000000
Time: 12:23PM, 24 November, 2010 Wednesday
क्या बुरे कर्मों के दायरे हमारी सोच और विचारधारा के अनुसार बदल जाने चाहिए?
क्या हर बुरा कर्म किसी के लिये धर्म है तो किसी के लिये अधर्म है?
क्या सभी के द्वारा एक-स्वर में बुरा कर्म केवल अपने आप में बुरा कर्म नहीं ठहराया जाना चाहिए?
मेरी गंदगी गंदगी नहीं है, दूसरे की गंदगी गंदगी है. इसलिये दुसरे से परहेज करो. केवल मेरे पास आओ. मैं ही तुम्हारा उदधारक हूँ.
शिक्षित और सभ्य कहलाकर इंसान की वर्जनाएँ सीढ़ी-दर-सीढ़ी क्या समाप्त हो जानी चाहियें?
क्या यह दौड़ मनुष्यता पर हमला नहीं है?
आज एक जीव को मारने वाला न केवल अपनी संवेदनाओं को ह्रदय से समाप्त करता है अपितु वह अपने सहजात प्राणियों के प्रति भी असंवेदनशील हो जाता है.
बिना वजह के क्या शाकाहारी ........ इंसानी-क़त्ल करने वाले, सुपारी लेकर ह्त्या करने वाले, बम-विस्फोट करने वाले कर्म या फिर देश-द्रोह करने की ओर उन्मुख हो सकते हैं?
क्या मांसाहार से ही वह असीम ताकत मिलती है जो इन कामों की ओर प्रेरित करती है?
सटीक और गहन अध्यन आधारित व्यंग्य!!
जवाब देंहटाएंसही संदेश प्रेषित करता है।
बहुत करारा थप्पड़..................... ना जी ना थप्पड़ रहने दीजिये नहीं तो फिर बखेड़ा खडा हो जाएगा.......................ज़वाब दिया है ..............
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं..
जवाब देंहटाएंप्रिय पाठको !
यह न तो थप्पड़ था और न ही चाँटा. हाँ इसमें करारापन अवश्य था. उसे ठीक पहचाना.
यह तो केवल मज़ाक में लगाई गई चपत थी. आपको सभी हस्त-प्रहारों के भेद बताने होंगे, जिससे आगे ऎसी भूल न हो.
— 'चपत' मतलब ........ क्रोध को शांत करते हुए किया गया हस्त-प्रहार ........... इसमें केवल लक्ष्य पर चोट लगती है. अधिक आवाज नहीं होती.
— 'चाँटा' मतलब ........ क्रोध को काबू न कर पाने में किया गया हस्त-प्रहार ....... इसमें चोट मारने के साथ अच्छी-खासी आवाज भी होती है.
— 'थप्पड़' मतलब ...... क्रोध के साथ किया गया सप्रयास हस्त-प्रहार .......... इसमें चोट तो लगती ही है किन्तु उसकी गूँज वातावरण में काफी देर तक बनी रहती है.
एक भेद और होता है
— 'झापड़' ............. क्रोध की अतिशयता में स्वतः छूट जाने वाला हस्त-प्रहार. ..... इसमें काफी कुछ होता है - चोट, आवाज़, गूँज के साथ यह अपने चिह्न भी छोड़ देता है.
......... यदि किसी को कोई अन्य भेद भी आते हों तो कृपया बताएँ. ध्यान रहे वे केवल खुले हस्त से सम्बंधित हों.
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इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंलो कल्लो बात…………
जवाब देंहटाएंफिर लोग ऐसे क्यों इसका प्रयोग करते है?
बजाऊं क्या कान के नीचे?
दूं क्या एक दाएं हाथ की?
लगता है एक लगानी पडेगी?
ये नाम क्यो नहिं लेते (जाने दो ये नाम ही खराब है, आपने तो व्याख्या कर दी)
लेकिन ये………।
पुछ कर क्यों देते हैं?
..
जवाब देंहटाएंदिव्या जी
आपने जल्दबाजी की टिप्पणी हटाने में.
तात्पर्य नहीं जाना.
मेरी भूल है कि मैं अपनी परिभाषायें बनाने में ही लगा रहा और ये न जाना कि उनके अन्य अर्थ भी लग सकते हैं. आपका क्रोध मैं समझ सकता हूँ.
लेकिन मेरा तात्पर्य यह था कि .. मैंने पोस्ट में फिर भी संयत शब्दावली का प्रयोग किया है. जो मेरी दृष्टि से चपत ही है
उसके लिए तो और करारापन या सख्त व्यंग्य किया जाना चाहिए था. वह पोस्ट जल्दबाजी में लिखी गयी और काफी काट-छाँट कर परोसी गयी.
मैं आपकी भावना समझते हुए आपकी इस नाराजगी को स्वीकार करता हूँ.
मेरा औचित्य आपकी और अमित जी टिप्पणी की काट करना कतई नहीं था
केवल अपने संतुलित वाक्य-विन्यास की सीमा से बाहर जाने का संकेत कर रहा था.
"अभी विरोधियों ने चाँटा और थप्पड़ का स्वाद लिया ही नहीं है." तात्पर्य यह था.
सुज्ञ जी भी अपनी जगह सही कह रहे हैं वे जुमले व्यावहारिकता में अवश्य चलते हैं लेकिन मैं अभी उतना व्यवहारिक नहीं हुआ हूँ शायद.
मुझे मेरे मित्रजन अपेक्षित प्रतिक्रिया न दे पाने के लिए क्षमा करें.
..
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जवाब देंहटाएंचापलूसी की झलक .....!!!
@ आपने काफी सख्त मूल्यांकन किया मेरा.
फिलहाल स्वीकार है मुझे.
चरित्र का मूल्यांकन जल्दबाजी में करना भी नहीं चाहिए.
मुझमें धैर्य है इस बात को गलत सिद्ध करने का.
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जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी
लेकिन ये (………) पुछ कर क्यों देते हैं?
@ वो इसलिए कि क्रोध बनावटी होता है. केवल डराना उद्देश्य होता है.
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दिव्या जी,
जवाब देंहटाएंअनधिकार चेष्टा कर रहा हूं पर हितैषीयो को परखने में थोडा धैर्य होना आवश्यक है। इतनी जल्दबाजी से निर्णय उचित नहिं।
प्रतुल जी का व्यक्तित्व चापलूसी वाला नहिं हो सकता।
आपके ब्लोग पर उनकी टिप्पणीयो से आप वाकिफ़ ही है।
कृपया अन्यथा न लें।
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जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी की आपत्ति के बाद अपनी दूसरी टिपण्णी भी डिलीट करने के लिए मजबूर हूँ। अनाधिकार चेष्टा तो मैंने की दो बार। आगे से नहीं होगी होगी ऐसी गलती। अपने आप से वादा है। वैसे भी आप दोस्तों के बीच मुझे क्या अधिकार भला कुछ कहने का।
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जवाब देंहटाएंमेरे जैसे पाठक समझें या न समझें , लेकिन इस सुन्दर लेखन के लिए बधाई।
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जवाब देंहटाएंवैसे भी आप दोस्तों के बीच मुझे क्या अधिकार भला कुछ कहने का ।
@ आपके अधिकार अधिक हैं दिव्या जी,
मैंने एक बार फिर पढ़ा .. 'प्रिय पाठको !' वाली अपनी प्रतिटिप्पणी को
मुझे भी लगा कि उसमें अहंकार गुरु बनने की कोशिश में था. अतः आपने मुझे फटकार लगाकर मेरी उस त्रुटि की ओर इंगित किया. धन्यवाद.
परन्तु पोस्ट लिखते हुए मैं पूरी तरह गंभीर था पर काल्पनिक टिप्पणीकर्ताओं के विचारों को लिखते हुए मज़ाक के अंदाज़ को पकड़ा. पर मेरे मज़ाक भी चोटिल हुआ करते हैं - ऐसा मेरे मित्रों और घर के सदस्यों का कहना है. अतः उसका जो सम्पूर्ण प्रभाव प्रथम दृष्टि में दिखलाई दे रहा था वह ... चापलूसी भरा ही जान पड़ता था.
मेरे मन में प्रश्न आया कि ........ मैं अमित जी की चापलूसी क्यों करूँगा या फिर किसी अन्य की भी क्यों करूँगा?
मेरी तो अमित जी से जितनी वैचारिक मुद्दों पर बहस होती रही है वह हमारे बीच की दूरी को घटाती ही है. क्योंकि हमारे पहुँचाने की अंततः मंजिल एक ही होती है.
पुनः याद दिलाता हूँ कि आपके अधिकार सबसे अधिक हैं. आपने तो कमज़ोर कलम लेखकों को लिखना सिखा दिया और हम आपकी उस लेखन क्रान्ति को कैसे भूल सकते हैं.
आपका पोस्ट पर आना, सत्य बयानी करना, जैसा लगा वैसा कहना, मेरे लिए उपलब्धि होता है. — यह बात आप शुरू से जानते ही होंगे.
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"हो सकता है आपके जीवन में आलोचकों का बहुत योगदान रहा हो। लेकिन मुझे लगता है, प्यार, स्नेह और मृदु भाषा से जो सिखाया जा सकता है वो आलोचना द्वारा कतई नहीं सिखाया जा सकता।"
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