ओबामा !
आपका
भारत में सु-आगत है.
हम जानते हैं कि
आपने काफी हथियार
पाकिस्तान को बेचे
मदद की हमेशा
उसके बुरे वक्त में
अब क्या बुरे वक्त में वह तुम्हारा साथ नहीं देगा?
आतंकी शिविरों में जिहादियों की हमेशा उसे ज़रुरत रहती है.
आप अपनी बची-खुची पूँजी को वहाँ इन्वेस्ट कर सकते हो.
अभी सुनहरा अवसर है, वह जोह रहा है रास्ता किसी बड़े स्पोंसर का.
अभी भी आप उसकी नज़रों में बड़े का ओहदा रखते हैं.
खैर, आपके बड़प्पन का कद भारत में भी छोटा नहीं हुआ है.
आप अगर अपने निवेशकों के लिए सम्मान की नौकरी चाहते हैं तो
मेरे यहाँ एक रिक्ति है जूते पोलिश करने की. मासिक वेतन १००० रुपये होगा.
यहाँ नये छोटे कर्मचारी को यह भी बड़ी मुश्किल से मयस्सर है.
इस विचार को आप मेरी रहम ना समझना
यह विचार तो
'श्रीराम सेतु में योगदान देने वाली
गिलहरी की प्रेरणा से आया है.
हमारी संस्कृति में अतिथि को खाली हाथ लौटाना
असभ्यता मानी जाती है.
अतः हम पिछली सभी कटुताओं को भुलाकर
फिर से नये रिश्ते बनाने की भूल करते हैं.
आपकी धरती की गंध हमारी मिट्टी की गंध में इस कदर मिल चुकी है कि
कोई नहीं जान पायेगा आपके उन मंसूबों को जो घोर स्वार्थ की सड़ी गंध से
हमारी सांस्कृतिक शिष्टताओं को नाक-मुँह सिकौड़े भगाने को विवश किये है.
चाहता हूँ कि सभी सामर्थ्यवान
कम-से-कम सहयोग की भाषा तो बोलें.
क्या मैंने जूते पोलिश का ऑफर देकर बुरा किया ?
क्या ताउम्र भारतीय ही दूसरे देशों में जाकर छोटे समझे जाने वाले जॉब करता रहेगा ?
क्या होटल मेनेजर के लिए गोरी चमड़ी और बर्तन माजने के लिए काली चमड़ी फिक्स है ?
क्या उनके प्रतिबंधों को हम तो आदर दें और
अपनी ही ज़मीन पर उनकी सुरक्षा-व्यवस्था को प्रतिबंधित कर पाने की हिम्मत भी न कर पायें?
मैं क्या करूँ ?
मैं क्यों नहीं पचा पा रहा हूँ ओबामा के आने को ?
हे ईश्वर! मेरे मन में सभी के लिए प्रेम क्यों नहीं भरता ?
"हे ईश्वर! मेरे मन में सभी के लिए प्रेम क्यों नहीं भरता "
जवाब देंहटाएंप्रतुल भाई, सभी के लिये प्रेम होने के लिये भगवान होना और सभी के लिये नफ़रत होने के लिये शैतान होना लाजिमी है। मानव मन में तो राग, द्वेष, प्रेम, घृणा इनका सम्मिश्रण रहेगा ही।
@ "हमारी संस्कृति में अतिथि को खाली हाथ लौटाना
असभ्यता मानी जाती है"
काये कू टेंशन लेने का, हजार रुपये महीने का फ़टका खाने की कोई जरूरत नहीं। बड़े-बड़े ओहदेदार और अहलकार हैं न संस्कृति का मान रखने के लिये, नहीं लौटायेंगे अतिथि को खाली हाथ। हाथ मिलाकर निहाल होते रहेंगे और समर्पण करते रहेंगे सब कुछ।
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जवाब देंहटाएंसंजय जी, मुझे आपके उत्तरों में न केवल व्यावहारिक दर्शन दिखायी देता है बल्कि बेख़ौफ़ तार्किकता नज़र आती है.
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सार्थक और सराहनीय प्रस्तुती......लेकिन ये तो जूते पालिश के बदले सब साफ करने वाले हैं......
जवाब देंहटाएंसराहनीय
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जवाब देंहटाएंओबामा को अपना समझना , भारत के लिए नुकसान दायक है । वो कभी भारत की बेहतरी नहीं सोच सकता । भारत आकर , गांधी और विवेकानंदा के बारे में शौर्य गाथा गाकर , अपना सम्मान करवा लिया बस । वो न तो भारत के हैं, न ही पाकिस्तान के। बस दोनों ही देशों को लोलीपोप थमाकर अपने से मिलाये रखना चाहते हैं। ये इनकी strategy है।
भारत हो या पाकिस्तान , तरक्की अपने दम पर ही कर सकता है । ऐसे मौकापरस्त मेहमानों की तीन दिवसीय यात्रा से कुछ नहीं होने वाला !
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प्रतुल जी ओबामा जी हमें कुछ देने नहीं बल्कि हमसे मांगने आए हैं. मुझे तो ये एक अच्छी शुरुवात लगाती है. बस हमारे नेता लोग अभी उस मानसिकता को अपना नहीं पाए हैं की अपना देश भी उस मुकाम पर पहुच चुका है जहा वो अमेरिका जैसे देश को भी कुछ दे सकता है. और ये परम्परागत अध्यात्मिक ज्ञान नहीं बल्कि विशुद्ध भौतिक वस्तुओं का व्यापर है.
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जवाब देंहटाएंबराक ओबामा ने आउट सोर्सिंग और भारतीयों को अमरीका में नौकरियों के बारे में एक शब्द भी कहने की कोई जरूरत ही नहीं समझी। इसका मतलब साफ है कि भारतीयों की अमरीका में नौकरियों पर पाबंदी यथावत् जारी रहेगी।
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जवाब देंहटाएं@ मित्र जय कुमार झा जी,
हाँ इनके इरादे कुछ ऐसे ही लगते हैं. अमेरिकन्स को जूते पोलिश करवाने की नौकरी देना शायद महँगा साबित हो.
मैंने गुरुद्वारे में देखा है, बड़े-बड़े लोगों को अपना अहंकार छोड़ जूते साफ़ करते हुए.
छोटा समझा जाने वाला काम निःसंकोच करना -- एक पैमाना है किसी को परखने का. यदि कोई उसे पूरी ईमानदारी से निभाता है तो वह काबिल होता है सम्मान देने का, शीर्ष पर बैठाने का.
श्रीराम के खडाऊँ राजा भरत ने राजगद्दी पर ही नहीं रखे बल्कि अपने ऊपर युगों तक लग सकने वाले कलंक को धो डाला. अब उनका भी इतिहास में श्रीराम से कम आदर नहीं है.
श्रीकृष्ण ने मित्र सुदामा के चरणों को अपने हाथों से ही नहीं पखारा अपितु उन्होंने लग सकने वाले 'ऊँच-नीच के भेदभाव' को सदा के लिए विलग कर दिया. अब उनको सच्चे मित्र के रूप में भी याद रखा जाता है.
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जवाब देंहटाएंअशोक बजाज जी
आपके इस 'सराहनीय' में मुझे अपनी बात का समर्थन नज़र आ रहा है. धन्यवाद.
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जवाब देंहटाएंमित्र दीप
ये "भिक्षाम देही" की पुकार
किसी साधू ब्राहमण की नहीं थी.
बल्कि पातालवासी रावण की थी.
इसी रावण ने कभी वैदेही को छला था,
जानते हैं ना!
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जवाब देंहटाएंभारत हो या पाकिस्तान, तरक्की अपने दम पर ही कर सकता है। ऐसे मौकापरस्त मेहमानों की तीन दिवसीय यात्रा से कुछ नहीं होने वाला!
@ एकदम सच्ची बात कही, हमें केवल अपनी शक्ति बढाने पर ध्यान देना होगा न कि ताकतवर समझे जाने वालों की चाटुकारिता करने पर.
भारत को अपना सम्मान करवाना आना चाहिए.
कवि दिनकर ने कहा है :
स्वर में पावक यदि नहीं, वृथा वंदन हैं.
वीरता नहीं, तो सभी विनय क्रंदन है.
सर पर जिसके असिघात, रक्त-चन्दन है.
भ्रामरी उसी का करती अभिनन्दन है.
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भ्रामरी = वीर बाला, पार्वती का एक नाम भी है.
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जवाब देंहटाएंबराक ओबामा ने आउट सोर्सिंग .... पाबंदी यथावत् जारी रहेगी।
@ दिव्या जी,
आपका आकलन न्यायशास्त्र के धूम-अनल न्याय की दृष्टि से शत-प्रतिशत सही है. इस न्याय के अंतर्गत अनुमान लगाने की एक वैज्ञानिक विधि है 'जहाँ धुआँ होता है वहाँ अग्नि होती ही है. जहाँ अग्नि होगी वहाँ उसके लगने का कारण मौजूद होगा ही. जहाँ कारण मौजूद होगा वहाँ कर्ता की उपस्थिति की संभावना बनती है.
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कविता ने रोचक टिप्पणियों का सृजन किया है।
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जवाब देंहटाएंप्रिय देवेन्द्र जी
आपने हमारी बातचीत में रस लिया हमें सर्वश्रेष्ठ प्रतिक्रिया मिल गयी.
प्रमाणित हुआ कि
बतरस ही सर्वश्रेष्ठ रस है.
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