गौरव अपने ..........आखिरकार
बने .....बड़े दिन में ..........H R.
हँसमुख पहले था ...... किरदार
अब ..... वनमानुस का अवतार.
चुप-चुप रहना, छिप-छिप हँसना
हैं सचमुच........ अदभुत सरदार.
सीमा....विप्रा .....पाठ.... पढ़ातीं
"कम बोलो...कम खोलो ....द्वार."
पहले .....पाँव ..... फैला लेते थे
अब .... सिमटा ...उनका संसार.
चैटिंग कोना ...... नहीं चहकता
मोबाइल पर ........ होता प्यार.
विप्रा और सीमा की ..... आँखें
बनी हुई हैं ............... पहरेदार.
दोस्त पुराने ......... बोला करते
प्रेम भरे स्वर में ...... "गद्दार”.
[अपने साथी गौरव वीर सिंह 'गिल' जी पर लिखी गयी कविता, जो अब HR मेनेजर हो गए हैं.]
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