"केवल एक ही भाषा में हमारे भावों की व्यंजना हो सकती है, केवल एक ही भाषा के शब्दों के सूक्ष्म संकेतों को हम सहज और निश्चित रूप में ग्रहण कर सकते हैं. यह भाषा वह होती है जिसे हम अपनी माता के दूध के साथ सीखते हैं, जिसमें हम अपनी प्रारम्भिक प्रार्थनाओं और हर्ष तथा शोक के उदगारों को व्यक्त करते हैं. दूसरी किसी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाना - विद्यार्थी के श्रम को अनावश्यक रूप से बढ़ावा देना ही नहीं, बल्कि उसकी मानसिक स्वतंत्रता को भी पंगु बना देना है."
— अंग्रेज़ी साहित्यकार ब्रेल्सफोर्ड
सही बात!
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