शनिवार, 8 मई 2010

बचत

जेब में
मेरे
'अठन्नी '
हाथ फैलाता
...........................................................................भिखारी
दूर दिखता.
काटता हूँ
मैं
इधर
चुपचाप कन्नी.

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय मित्र जेब में अट्ठन्नी लेकर चलोगे तो भिकारी से कन्नी कटना जरुरी हो जायेगा की कहीं वो तुम्हे ही रूपया देकर ना चला जाय..... हो हा हा हा हा ...... गुरु छा गए गुरु....... तुम्हार भविष्य बहुत उज्ज्वाल है गुरु.... ओ चक दे फट्टे नप दे किल्ली रात कानपूर ते सुबह दिल्ली।

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  2. जब खर्चा रुपैया हो तो भैया, तो आमद की अठन्नी भी आठ-मन सोने सी कीमती लगती है

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नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.