रविवार, 2 मई 2010

प्रचारतंत्र की जय [आज के नेता का स्वगत कथन]

मुझमें ना है कोई योग्यता
फिर भी मैं हीरो हूँ.

ना ही मुझमें रंग-रूप का
कोई आकर्षण है.

प्रबुद्ध जनों को शीघ्र
प्रभावित कर लूँ — असंभव है.

जिज्ञासु बालक की
जिज्ञासा को शमन करन का
मुझपर नहीं मंत्र-वंत्र है
ना ही कुछ अध्ययन है.

मैं केवल छपता रहता हूँ
पत्र-पत्रिकाओं में.
करूँ अटपटे काम
मैं रोचक न्यूज़ बना करता हूँ.

सर के बल जब चलूँ
तो भी फ्रंट पेज़ छपता हूँ.

मोटी रकम / न्यूज़ पेपर को / दूँ जैसा छाप जाऊँ.
बार-बार न्यूज़ चैनल को / मोटी रकम पहुँचाऊँ.
खुद को मनचाहा फिल्माऊँ.

पत्रकार पर जाँच कमेटी नहीं बैठती भाई.
चाहे कितना भ्रष्ट पतित हो दूर रहे सीबीआई.
ऐसे में मन कहता मेरा "प्रचारतंत्र की जय!"

[आज के नेता का स्वगत कथन]

3 टिप्‍पणियां:

  1. आप पत्रकारिता पर कटाक्ष कर रहे हैं ,पता नहीं क्यों मुझे लगता है की अगर समाज का ढांचा बदलेगा तो सिर्फ पत्रकारिता के कारण ही ,वैसे अपनी अपनी सोच है और इस तरह के लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी ही तो बस हमें आजाद होने का एहसास कराती है

    अगर आपकी नजर में कोई सोरायसिस का मरीज हो तो हमारे पास भेजिए ,हम उसका फ्री ईलाज करेंगे दो महीने हमारे पास रहना होगा
    www.sahitya.merasamast.com

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रचार तंत्र की जय,
    आज कल की बहुत बडी सच्चाई है यह की जो बिकता है वही चलता है ।

    अच्छी प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  3. नेताजी से किसी ने पूछा की आपमें इतनी बदबू क्यों आती है आप इतने सड़े से क्यों लगते है तो नेताजी ने कहा ------
    नेताजी कहीं ..........

    ऐसी माँ की कोख से हुए पैदा
    कीचड़ ही भरा है यहाँ सदा
    कीचड़ बदबू तो हमारा अंग है
    ना देख इधर सब नंगम-नंग है
    ...............xxxxx................
    ऐसी माँ { राजनीति }

    जवाब देंहटाएं

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