सोमवार, 26 अप्रैल 2010

अंत - सूक्ष्मता का

दुष्ट विचारों को
पहचान
उनसे नज़र बचाकर
निकल जाना चाहता हूँ.
पर, कैसे हो संभव
जब जानता हूँ मैं —
"परिचितों से
नज़र चुराना अच्छा नहीं
अच्छा या बुरा भाव
व्यक्त करना ज़रूरी है."

करता हूँ कभी
व्यक्त — 'घृणा' अपनी भी
उन विचारों से, जो हितकर नहीं
लिप्तता का सुख
— 'पल' का
मिथ्या है — सोचता हूँ ऐसा भी.

पर, सच्चा
सच्चा सुख — पाने में
खो गया हूँ मैं
हो गया हूँ मैं
तब से
— प्रतिक्रिया हीन
— प्रयतता से दीन
— एक दो तीन
गिनतियों में लीन.
— पूर्णतया विलीन.

ब्रहमांड में जैसे
मर गया हो कोई
विशाल चमकता 'पिण्ड'
क्रमशः लघु से लघुतर होता
द्युति से द्युतिहीन होता
बचता तो केवल कर्षण
'कृष्ण-गह्वर'
अंत — सूक्ष्मता का.

4 टिप्‍पणियां:

  1. विशाल चमकता 'पिण्ड'
    क्रमशः लघु से लघुतर होता
    द्युति से द्युतिहीन होता
    बचता तो केवल कर्षण
    'कृष्ण-गह्वर'
    अंत — सूक्ष्मता का.
    अति सुंदर ।

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  2. यह महसूस करने का तरीका है.

    आप चाहो तो ऐसा महसूस कर लें कि:

    उनसे बच कर
    कुछ सार्थक सृजन में
    लग गया हूँ मैं.
    बेबात की प्रतिक्रियाओं से बच
    कुछ अद्भुत रच गया हूँ मैं
    वही
    जो नव समाज के निर्माण में
    अपना योगदान करेगा...
    दीर्घ से दीर्घतम
    महसूस करने लगा हूँ मैं....


    मन का खेला है भई..नजरिया जैसा रखना चाहेंगे वैसे ही हो जायेगा.

    बढ़िया मनोभाव उकेर दिये, बधाई. चिन्तन का विषय है.

    जवाब देंहटाएं
  3. ब्रहमांड में जैसे
    मर गया हो कोई
    विशाल चमकता 'पिण्ड'
    क्रमशः लघु से लघुतर होता
    द्युति से द्युतिहीन होता
    बचता तो केवल कर्षण
    'कृष्ण-गह्वर'
    अंत — सूक्ष्मता का.

    maha shivling !!!!

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  4. Sameer Sir,
    सच है —
    कि गुरु से कुछ छिपा नहीं रहता.
    गुरु जहाँ भी हो
    अपने शिष्य को मार्गदर्शन
    देने पहुँच जाता है.

    कभी आपसे परिचय इतना ही था जितना एक भिक्षुक को किसी चलते राहगीर से होता है.
    और भिक्षुक उस हर राहगीर को पसंद करता है जो उसके खाली कटोरे में एक-आध सिक्का डाल कर हाथ जोड़ आगे बढ़ जाता है.
    भिक्षुक यह नहीं सोचता कि राहगीर कितना अमीर है, उसके क्या विचार हैं, क्या मानसिकता है, ये प्रश्न विचारणीय हैं, लेकिन मेरे लिए ये प्रश्न आपके ब्लॉग के सफ़र के बाद मानस में विचरे. कई व्यक्ति होते हैं जिनके बारे में एकदम आकलन नहीं करना चाहिए.
    ठीक भी है धीरे-धीरे परिचय हो तो दूर तलक निभता है. लेकिन यहाँ एक पकी सोच पर मुलम्मा चडाने का प्रश्न है जो सहज नहीं. फिर भी आपकी हर टिपण्णी मेरे लिए न केवल उत्साहवर्धन होती है बल्कि वह तो आशीर्वाद जान पड़ती है.

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