बुधवार, 14 अप्रैल 2010

दिवा-स्वप्न

एँ! क्या मैं सो रहा था?
जो मैंने देखा, समझा — झूठ था?
इंडिया टीवी की खबर था?
क्या सच नहीं?
अजमल कसाब को फाँसी हो चुकी है!
सीरियल बम-ब्लास्टों के के गुनाहगार — जेल के अन्य कैदियों के द्वारा मार दिए गए!

अजी! मैंने लाइव टेलीकास्ट देखा!
भारत ने जो-जो सबूत पाकिस्तान को दिए
उनके बिनाह पर पाकिस्तान ने दहशतगर्दियों पर मुकम्मल कार्रवाई की.
भारत ने जैसा-जैसा चाहा पाकिस्तान ने वैसा-वैसा ही किया.
ज़रदारी मुशर्रफ शरीफ सब एक साथ
मनमोहन के एक बार बुलाने पर/ दिल्ली में/
पूरे मीडिया के सामने/ आतंक के खिलाफ शुरू हुयी मुहीम में
हाथ से हाथ मिला/ गले से गले लगा/ आकर/ मिलकर खड़े हो गए.
ध्यान रहे — वह ईद का मौक़ा नहीं था
जिस कारण वे इकट्ठा थे.
साल में एक-आद बार ऐसा करना उनके साम्प्रदायिक सौहार्द वाले शेड्यूल में है.


मेरी शहीदों की फेहरिस्त
फिल्मी कलाकारों, क्रिकेटरों की फेहरिस्त से ज़रा छोटी है.
फिल्मी कलाकार, क्रिकेटर्स की फेहरिस्त तो मैं डेली अपडेट करता हूँ.
— मीडिया जो है.
लेकिन शहीदों की फेहरिस्त को मैंने कई सालों से अपडेट नहीं किया.
आजादी से पहले के शहीद ही मुझे याद है.
वह भी पूरे नहीं.
क्या बाद के शहीद तन्ख्वाही थे, इसलिए उन्हें लिस्ट में ना जोडूँ?
— कारगिल में कौन-कौन शहीद हुए?
— मुंबई हमले में किस-किस कमांडो ने जान गँवाई?
— दिल्ली के जामिया नगर में किस पुलिसकर्मी की जान पर बन आई?
— भारत-पाक सीमा पर घुसपैठियों से टक्कर लेते किस-किस जवान ने गोली खायी?
अरे भाई, उन सबके नाम खोजो/ मुझे दो/ मैं लिस्ट अपडेट करूंगा.
मैं भी एक शाम नए शहीदों के नाम करूंगा.
अब शहादत का जज्बा नहीं, जो शहादत का काम करूँ?
नाम ही याद कर लूं/ शहीदों की लिस्ट ही अपडेट कर लूं.
किसी आई-क्यू कम्पटीशन में
भूले-बिसरे कोई पूछ ही बैठे.
— तब/ मुझे यदि याद रहा
— बताकर/ इस कमजोर शरीर के साथ
— जीत लूँ/ एक बड़ी धनराशि.

अँ! क्या मैं सो रहा था!!
जो मैंने देखा/ समझा — झूठ था/ इंडिया टीवी की खबर था?
क्या सच है?
क्या सच है —
संत साधु-समाज की भागीदारी बड़ी है देश की राजनीति में?
रामदेव और मायावती ने खोज लिया है अपना-अपना चन्द्रगुप्त?
विदेशी कम्पनियों का रंगीन पानी बेचकर बने बिगबी और लिटिलटी
बन नए हैं भारत रत्न के दावेदार?

क्या सच है —
भाजपा को मिल गए हैं चुनाव लड़ने को राष्ट्रीय मुद्दे?
कांग्रेस को फिर से सरकार बनाने को गांधी परिवार के मुरदे?

क्या सच है —
हो गयी है देश में शान्ति, सौहार्द, परस्पर भाईचारा?
या झूठ है? सरासर झूठ है?
मैं झूठ ही देखे जा रहा हूँ लगातार?
या मैं लाख कोशिशों के बावजूद जाग नहीं पा रहा हूँ?
जाग नहीं पा रहा हूँ....

4 टिप्‍पणियां:

  1. मन को झकझोरने जैसा रहा यहाँ आकर पढना!

    शानदार!

    कुंवर जी,

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  2. आदरणीय प्रतुल भाई साहब, आपकी यह कविता भीतर तक जाकर लगी है| आपकी लेखनी का ऐसा ओज मैंने पहले नहीं देखा था| मैंने तो आपको हमेशा साहित्यिक रचनाएं करते ही देखा| यह भी सच है कि आपकी साहित्यिक रचनाएं उन्नत श्रेणी की हैं| किन्तु इस प्रकार की रचनाएँ अब कहाँ खो गयीं?
    आपसे अनुरोध है कि ऐसी लेखनी फिर से चलाएं| युवाओं में जोश व क्रोध भरने के लिए ये रचनाएं बेहद कारगर सिद्ध होंगी...
    आभार...

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  3. जब आग लगाने की हर कोशिश बेकार सिद्ध हो...
    आग जलाने वाली तीलियाँ गीली हो जाएँ... तब कैसे कोई अपनी ऊर्जा नष्ट करता रहे...
    मैं अपनी इच्छाओं का आदर्श रूप आपमें देखने लगा हूँ. आपकी ओजमयी और प्रेरित करने भाषा से मैं पुनः भभक उठता हूँ.
    यदि आपकी प्रेरणा रही तो तीलियों की ज्वलनशीलता फिर लौट आयेगी.

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  4. दिवस जी, आपको संबोधन करना ही भुला बैठा.
    क्रोध में .... शिष्टाचार भी संतुलन खो बैठता है. ऐसे में सुज्ञ जी के वचन याद करता हूँ.

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