घर के एक कोने में
कर दी हैं इकट्ठी
घर के सभी सदस्यों ने
— अपनी-अपनी रद्दी.
माँ
महीनों से
जोड़ रही थी जिस कबाड़े को
वह कबाड़ा बिक गया
— पिता की बिना मर्जी.
लास्ट सन्डे
न्यूज़पेपर में छपा जो
एडवरटायिज़ — "फ्लेट एमआईजी बनेंगे".
— खोजते हैं अब उसी को भैया-भाभी.
पिछले हफ्ते ही खरीदा —
"रोज़गार"
वैकेंसी थी — किसी कम्पनी को
चाहिए था 10 वीं पास 'चौकीदार'.
घर में तो मैं
चौकीदारी कर न पाया.
ले गया सब — कबाड़ीवाला.
बहन ने जो सिलने दिए थे सूट
उसकी पर्ची नहीं मिलती.
संदेह रद्दी पर उसे है.
— अब, लौटाएगा न सूट दर्जी.
पिता झल्लाते ढूँढ़ते हैं
'योग की पुस्तक'
वृद्धावस्था पेंशन की
— उसमें रखी थी अर्जी.
माँ थी सचमुच परेशान
शाम तक उसे करना था
— 'इंतजाम'.
इसलिए तो बेची थी रद्दी
मिलेगा पैसा
तो बनेगी शाम की सब्जी.
कबाड़ीवाला
ले गया अरमान सारे.
मेरा संभावित रोज़गार.
भैया-भाभी के सपनों का घर.
बहन का नया फैशन.
वृद्ध माँ-पिता की आखिरी उम्मीद.
— अब काम किया जाएगा फर्जी.
भावुक कर देने वाली कविता...बहुत अच्छे से दृश्य प्रस्तुत किया आपने घर के सदस्यों का......"
जवाब देंहटाएं