सोमवार, 12 अप्रैल 2010

उर द्वंद्व

दो उरों के द्वंद्व में
लुप्त बाण चल रहे
स्नेह-रक्त बह रहा
घाव भी हैं लापता।

नयन बाण दोनों के
आजमा वे बल रहे
बाणों की भिडंत में
स्वतः चार हो रहे।

बाणों की वर्षा से
हार जब दोनों गए
मात्र एक बाण छोड़
संधि हेतु बढ़ गए।

नाग पाश बाहों का
छोड़ दिया दोनों ने
स्नेह घाव दोनों के
कपोलों पर बन गए।

दोनों ही हैं शस्त्रविद
दोनों पर ब्रह्मास्त्र है
दोनों सृष्टि हेतु हैं
न करें तो विनाश है।

दोनों तो हैं संधि-मित्र
प्रलय काल जब भी हो
जल-प्लावन काल में
मनु पुत्र उत्पन्न हों॥

[एक हलकी कविता, श्रृंगारिक कविता का प्रारंभ १९८९]

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