रविवार, 14 मार्च 2010

प्राइमरी का मास्टर

प्राथमिक अध्यापक
मतलब, प्राइमरी स्कूल का मास्टर
बाल मस्तिष्क की उपजाऊ भूमि पर
नैतिकता के बीज छितरने वाला।

अच्छे बच्चे --
जिद नहीं करते/
झूठ नहीं बोलते/
बड़ों की बात मानते हैं।
शोर नहीं मचाते/
गंदे नहीं रहते/
सुबह उठकर दांत मांजते हैं।

ना जाने कितने ही नैतिक सूत्र
किताबी शिक्षा के साथ-शाथ
निरंतर खाद पानी की तरह दिया करता है।

प्राइमरी का मास्टर --
बाल मस्तिष्क की कल्पनाशीलता को
पंख ज़रूर लगा देता है लेकिन
ज़मीन पर मजबूती से टिके रहने के लिए
उसकी सोच को तर्क के भारी जूते भी पहनाता है।

उसके तर्क के ये जूते
घर में काफी शोर करते हैं
मम्मी! आप दादा जी के सामने मुँह ढकती हो/
घर के बाहर बाल खोल कर निकलती हो, क्यों?
पापा! आप मंगल को शेव क्यों नहीं करते?
स्कूल जाते बिल्ली रास्ता काट जाए तो क्या होता है?
कोई बात तीन बार बोलने से ही क्यों पक्की मानी जाती है?
क्या पहली और दूसरी बार की बातें झूठ बोलने की छूट देती हैं?

घर की सुख-शांती के लिए
माँ-पिता अक्सर उसे
भोले बाबा के मंदिर ले जाते हैं
हाथ जुडवाते हैं/
माथा टिकवाते हैं/
मंदिर के बाहर तर्क के जूते खुलवाते हैं।
इस तरह उसे आस्तिक बनाते हैं।

परिणामस्वरूप
बच्चा आस्तिक बनता है
आँख मूंदकर बिना सोचे
अटपटे विश्वासों में इजाफा करता है।
पुस्तक में रंगीन चिड़ियों के पंख रखकर समझता है --
"आने वाली परीक्षा में ज्यादा नंबर आयेंगे"
चील कौवे देखकर शकुन-अपशकुन गड़ता है।
अपने से ज्यादा भगवान् पर भरोसा रखता है।
हिचकी को किसी का याद करना और
आँख भुजा आदि फड़कने को
अच्छी-बुरी घटनाओं से जोड़ता है।

प्राइमरी का मास्टर
जहां बच्चे की सोच को
वृहत और लोजिकल बनाने का प्रयास करता है
वहीं मम्मी-पापा द्वारा दी गयी घरेलू शिक्षा
उसे सीमित और केवल अपने लिए जीना सिखाती है।
धीरे-धीरे पुस्तकीय शिक्षा और घरेलू ट्रेनिंग
एक-दूसरे में घुल-मिल जाती है।

प्राइमरी का मास्टर
स्कूल में केवल मास्टर नहीं होता
वह मासिक पगार का जरूतमंद
मजबूरी में कक्षा के बच्चों को रोके रखने वाला
- एक बेरियर
दोडते-भागते बच्चों के लिए
- एक स्पीड ब्रेकर
एजुकेशन के कई पडावों में से
- एक स्टोपेज होता है।

क्या इन रुकावटों की जरूरत है?
सोचता हूँ -- नहीं है।

माँ और पिता
बच्चे को जन्म दें/
पालें-पोसें/
इतना काफी है।
चलने-बोलने लगे तो उसे
घरेलू इस्तेमाल का साधन मात्र ना बनाएं
शिक्षा के सतत, गतिशील, तार्किक प्रवाह में धकेल दें।

प्राइमरी का मास्टर
जो भी पढ़ाता है
बच्चा घर में आकर दोहराता है, सबको सुनाता है।
इस कारण सबको पता रहता है कि वह क्या पढ़ता है।
लेकिन
यूनिवर्सिटी का मास्टर
जो पढ़ाता है
उसे बच्चा ना दोहराता है, ना अपनाता है
साथ ही घर के अभिभावकों को भी कोंफ्युजन रहता है।

फिर भी
"प्राइमरी का मास्टर" संबोधन
शिक्षा जगत में
कामचलाऊ सम्मान पाता है
उच्च शिक्षा की सीढ़ियों के पायदान पर
बैठा सकुचाता है
नए वेतन आयोग की सिफारिशों में
बाद में याद आता है।
किसान, मजदूर की ही भाँति
बीज की गुणवत्ता निखारने वाला मास्टर
अपने रहन-सहन की गुणवत्ता नहीं सुधार पाता।

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी कविता के प्रतिमान के आगे मैं अपने को तुच्छ समझता हूँ |

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  2. कृपया अपने कमेन्ट सिस्टम से यह वर्ड -वेरीफिकेसन हटा लें !

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  3. प्राइमरी का मास्टर
    एक अच्छे कवि को गढ़ जाता है,
    पूसा सिंह या कुछ और कहलाता है,
    पर याद कभी कभी ही आता है।
    तुम्हारी कविता का प्रवाह अपने साथ बहा ले जाता है।

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  4. प्रवीण जी

    आपका सम्मान करता हूँ। आपको रचना प्रेषित करना इसलिए नहीं था की मैं श्रेष्ठता सिध्द करने की होड़ में लगा हूँ। आप जिस लगन से शिक्षा के स्तम्भ मज़बूत करने में लगे हैं वह बेजोड़ है। और ये बेजोड़ कार्य आपके द्वारा ही सतत प्रवाह में हैं तो व्यक्ति तुच्छ कैसे हो गया?

    हाँ! विनम्रता विशेषता अवश्य है, अहंकार का नाशक है। लेकिन मैं आपके व्यक्तित्व के दूसरे पहलुओं से भी अवगत होना चाहूँगा। फिर कभी...

    आप एक साधक हैं, मैंने तो वैसे ही आपकी साधना में विघ्न डाल दिया। आप सृजन करें, बीज निर्माण करें, पौध तैयार करें, शुभ कामनाएं।



    कभी दिल्ली आना हो तो मिलना।

    आपकी सुखद स्मृति में
    प्रतुल

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  5. ye rachna 'primery ka master' ka nishit roop se pratinidhtwa karti hai . dhanyawad is kavita se parichaya karaane ke liye.........

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