मंगलवार, 31 अगस्त 2010

मरी डायना मोटर अन्दर

pratulvasistha71@gmail.com
[राजकुमारी डायना जी की स्मृति में....]
[कविता में भागती कार की तरह से तीव्रता है, मोड़ हैं, कोशिश की गयी है शब्दों की बुनावट के माध्यम से उस समय को चित्रित करने की]

मरी डायना
मोटर अन्दर
______भाग रही थी
______जान छुड़ाकर
___________फोटोग्राफर 

___________करते पीछा 

_________________चित्र खींचने 

_________________उसके तन का. 

_____________प्रेमी उसका 

________अल फयाद
________डोडी, भी उसके
____________साथ-साथ था 

____________पवन चाल से 

________________दौड़ रही थी 

________________कार, संतुलन 

_____________________संवाहक का 

_____________________बिगड़ गया, पथ 

_________________मोड़, अचानक 

_________________आया, सम्मुख 

_________________अकस्मात् था. 

____________फटी ब्रेस्ट की 

____________नस भीतर ही 

________स्राव रक्त का
________होते-होते
___________होश उड़ा ले 

___________गया तभी ही. 

________खींच रहा था 

________फोटोग्राफर
___________फिर भी उसकी 

___________मरी देह का 

______________चित्र, दीखने 

______________वाला कर्षक 

________एक विशेष 

________एंगल से जो कि 

___________कल को शायद 

_____________खूब बिकेगा 

________________लाख-लाख 

___________डॉलर में — छपने. 

2 टिप्‍पणियां:

  1. अपने गुरु श्रेष्ठ को शिष्य का उलाहना ..........

    बड़ी पुरानी बात निकाली फिर से,,,

    @ बात पुरानी बेशक है जी ....फिर से.
    कुछ शब्दों की वही टिप्पणी .... फिर से.
    लगता है बस दौड़ लगाने में हो तत्पर
    मर्म कविता का छोड़ा है ...... फिर से.

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समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.