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भारतीय लोकसभा में सबसे अधिक बोला जाने वाला शब्द "बैठ जाइये" है.
कहते हैं सभ्य वह होता है जिसे सभा में बैठने का सलीका आता हो.
'सभ्य' शब्द 'सभा' से निर्मित है. इसका सीधा अर्थ है सभा में बैठने योग्य.
सभा में वही बैठने योग्य है जिसे 'सभा' में बैठने के तौर-तरीके आते हों.
देश की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण सभा 'लोकसभा' जहाँ नीति-निर्धारण और बनी-बनायी नीतियों की उपयोगिता और प्रासंगिकता पर समय-समय पर बातचीत होती है, नीतियों के असफल होने पर उसमें सुधार करने के लिए संशोधन भी किये जाते हैं. हम नयी नीतियों के निर्माण के लिए प्रयास भी होता देखते हैं. प्रयास के रूप में .... वही धमाचौकड़ी, वही जूतम-पैजार, वही मारामारी, वही गाली-गलौज, वही आरोप-प्रत्यारोप जिसे शुरू हुए संसद-सत्रों में आम-जनता देश के कर्णधारों के बीच होते देखती है.
एक विचित्र-सी स्थिति देखता हूँ लोकसभा में. ...
हाँ यह सही है कि अपनी बात अपनी बारी पर कही जाए, इससे सभा में अराजकता नहीं फैलती. मुद्दे पर बात भी हो जाती है.
लेकिन जहाँ बहुमत वाली सरकार जंगली कुत्तों* की तरह विपक्ष पर पिल पड़ी हो तब मन में तमाम तरह के सवालों को लेकर आये विपक्षी सांसद अपने को बेफकूफ बनता देख बौखला जाते हैं. और समय-असमय असभ्यता कर बैठते है.
हाँ, नेताओं में अधिक धीरज होना चाहिए. बिलकुल सही बात है. यह धीरज कभी-कभी इतना लंबा हो जाता है कि सभा-विसर्जित हो जाती है, और यदि यह धीरज और धैर्यवान हुआ तब तो पूरा सत्र ही समाप्त हो जाता है.
"धैर्य" ....... विपक्षी पार्षद "धैर्य".
"धैर्य" ....... विपक्षी विधायक "धैर्य".
"धैर्य" ....... विपक्षी सांसद "धैर्य".
"बैठ जाइये" और अपनी बारी का इंतज़ार करिए.
अपनी बात शान्ति से कहिये. अभी 'ओनेरेबल मिनिस्टर जी' बोल रहे हैं.......... बैठ जाइये.
"बैठ जाइये" ........ "बैठ जाइये" ..........."बैठ जाइये"
शोर मत करिए, 'बैठ जाइये" .......... "बैठ जाइये" .
यह देश की सबसे बड़ी सभा है ........ "बैठ जाइये".
* एक शेर का शिकार तो छह जंगली कुत्ते भी मिलकर कर लेते हैं. इस बात के मद्येनज़र ही विपक्षी सांसद को दबाने की बात की है. इन जंगली कुत्तों में ..... 'मंत्री', 'स्पीकर' का पक्षपातपूर्ण-व्यवहार, 'मार्शल' का सतत खौफ, सत्ता-पक्ष का भूतिया माहौल (हौवा), अपनी पद-निरस्तता का डर शामिल हैं.]
हमें इस सभा से ही अपेक्षा रहती है कि सभ्यता बरकरार रहे और वहीं............यह ......... असभ्य..ता.
[लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार को समर्पित]
प्रतुल जी ये नेता लोग खुद बैठें या ना बैठें पर देश का भट्टा जरुर बैठा देंगें. इन संवैधानिक संस्थाओं में हो रहे नाटक पर आपने एक नए ढंग से विचार किया है. अच्छा लगा.
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