मेरे बचपन का एक सच्चा सपना और २२ वर्ष वहले २१-१२-१९८८ को लिखी गयी कविता. इस कविता में मैंने एक क्षण-विशेष को मानस में कैद किया हुआ है जो आज भी मुझे बचपन जीने में मदद करता है. आप के सामने एक किस्से के रूप में...
बात पुरानी
वर्षा में भरा घुटनों तक पानी.
सड़कें डूबीं,
खेत डूबे,
हुयी फसलों को हानि.
मोर प्योहूँ-प्योहूँ करें.
मेढक टर-टर राग सुनाएँ.
अब भी थीं नभ पर छायीं काली घनघोर घटायें.
हुयी सांय,
हम बच्चे कूदें पानी पर, सवार से.
हमने तैरायीं कागज़ की नाव, बड़े प्यार से.
भोजन कर,
मैंने दूध माँगा नियम से रात में.
दूध न था जानकार, सो गया मायूस-सा मैं.
स्वप्न आया,
तो देखा एक गाय को साइकल पर.
बेच रही दूध, शुद्ध, ताज़ा व् तुरंत निकालकर.
गाय ने आवाज लगाई —
"दूध ले लो.............दूध."
मैंने पूछा —
"गऊ माता! कैसे दिया है दूध."
बोली वो मुस्कराकर —
"बेटा! तुमने क्या पूछ लिया?
जितना चाहे पियो,
मुफ्त है मैंने लिया."
रात को ही सपना मेरा,
अधूरा छूट गया.
अचानक,
जाग उठा मैं,
पुनः प्रसन्नचित सो गया.
waah kash aise hi sapne hindustan me gareebo ke bachchon ko aate rahe aur wo chain se khush ho sote rahe...
जवाब देंहटाएंबचपन में लिखी कविता-बहुत शानदार!!
जवाब देंहटाएंमेरे सपने की दूधिया गाय....बचपन की स्मृतियाँ हरी हो गयी...शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंगाय हमारी माता है।
जवाब देंहटाएं