मेरे ह्रदय में
पुण्य भी है पाप भी
वरदान भी है शाप भी
बिलकुल अवध के एक ढाँचे सा।
सोचता
सब नष्ट कर दूँ।
फिर से बनाऊं 'एक मंदिर'
शुद्ध, सुन्दर, पुण्य-संचित
यही बालक मन की मेरी
आखिरी जिद।
एक राखूँ
एक अर्पित।
हाथ मेरे
है खिलौना
'श्री राम भूमि बाबरी मस्जिद'।
(वैसे तो इस समस्या का हल निकल नहीं पाया है। लेकिन बालक मन तुरत-फुरत फैसला करना जानता है।)
dhanywaad aashutosh ji.
जवाब देंहटाएंmeri ye wo rachnaayen hain jin par koi tippani nahin milati. saraahne ke liye fir se ek baar dhanywaad.
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंshukriyaa sanjay ji.
जवाब देंहटाएंaapkaa apnatva satat zaari hai. apne pitaare se ab wo rachnaayen nikaalne ki himmat karoonga jo sadaa upekshit rahin.