tag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post1444655594444311260..comments2023-04-16T15:51:05.625+01:00Comments on Kavya Therapy: माइन है तो ..............फाइन हैPRATULhttp://www.blogger.com/profile/03991585584809307469noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-6201086666573456372011-03-31T08:29:04.388+01:002011-03-31T08:29:04.388+01:00"हो सकता है आपके जीवन में आलोचकों का बहुत योग..."हो सकता है आपके जीवन में आलोचकों का बहुत योगदान रहा हो। लेकिन मुझे लगता है, प्यार, स्नेह और मृदु भाषा से जो सिखाया जा सकता है वो आलोचना द्वारा कतई नहीं सिखाया जा सकता।"<br /><br />— मुझे यह विचार पसंद आया.PRATULhttps://www.blogger.com/profile/03991585584809307469noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-55656706803265235742010-11-25T16:14:41.846+00:002010-11-25T16:14:41.846+00:00..
वैसे भी आप दोस्तों के बीच मुझे क्या अधिकार भला.....<br /><br />वैसे भी आप दोस्तों के बीच मुझे क्या अधिकार भला कुछ कहने का । <br /><br /><br />@ आपके अधिकार अधिक हैं दिव्या जी, <br /><br />मैंने एक बार फिर पढ़ा .. 'प्रिय पाठको !' वाली अपनी प्रतिटिप्पणी को <br /><br />मुझे भी लगा कि उसमें अहंकार गुरु बनने की कोशिश में था. अतः आपने मुझे फटकार लगाकर मेरी उस त्रुटि की ओर इंगित किया. धन्यवाद. <br /><br />परन्तु पोस्ट लिखते हुए मैं पूरी तरह गंभीर था पर काल्पनिक टिप्पणीकर्ताओं के विचारों को लिखते हुए मज़ाक के अंदाज़ को पकड़ा. पर मेरे मज़ाक भी चोटिल हुआ करते हैं - ऐसा मेरे मित्रों और घर के सदस्यों का कहना है. अतः उसका जो सम्पूर्ण प्रभाव प्रथम दृष्टि में दिखलाई दे रहा था वह ... चापलूसी भरा ही जान पड़ता था. <br /><br />मेरे मन में प्रश्न आया कि ........ मैं अमित जी की चापलूसी क्यों करूँगा या फिर किसी अन्य की भी क्यों करूँगा? <br /><br />मेरी तो अमित जी से जितनी वैचारिक मुद्दों पर बहस होती रही है वह हमारे बीच की दूरी को घटाती ही है. क्योंकि हमारे पहुँचाने की अंततः मंजिल एक ही होती है. <br /><br />पुनः याद दिलाता हूँ कि आपके अधिकार सबसे अधिक हैं. आपने तो कमज़ोर कलम लेखकों को लिखना सिखा दिया और हम आपकी उस लेखन क्रान्ति को कैसे भूल सकते हैं.<br /><br />आपका पोस्ट पर आना, सत्य बयानी करना, जैसा लगा वैसा कहना, मेरे लिए उपलब्धि होता है. — यह बात आप शुरू से जानते ही होंगे. <br /><br /><br />..PRATULhttps://www.blogger.com/profile/03991585584809307469noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-34205098006984599152010-11-25T15:18:17.128+00:002010-11-25T15:18:17.128+00:00.
मेरे जैसे पाठक समझें या न समझें , लेकिन इस सुन्....<br /><br />मेरे जैसे पाठक समझें या न समझें , लेकिन इस सुन्दर लेखन के लिए बधाई। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-73387504244188309002010-11-25T15:14:31.603+00:002010-11-25T15:14:31.603+00:00.
सुज्ञ जी की आपत्ति के बाद अपनी दूसरी टिपण्णी ....<br /><br />सुज्ञ जी की आपत्ति के बाद अपनी दूसरी टिपण्णी भी डिलीट करने के लिए मजबूर हूँ। अनाधिकार चेष्टा तो मैंने की दो बार। आगे से नहीं होगी होगी ऐसी गलती। अपने आप से वादा है। वैसे भी आप दोस्तों के बीच मुझे क्या अधिकार भला कुछ कहने का। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-70007088576827161202010-11-25T14:19:33.569+00:002010-11-25T14:19:33.569+00:00दिव्या जी,
अनधिकार चेष्टा कर रहा हूं पर हितैषीयो ...दिव्या जी,<br /><br />अनधिकार चेष्टा कर रहा हूं पर हितैषीयो को परखने में थोडा धैर्य होना आवश्यक है। इतनी जल्दबाजी से निर्णय उचित नहिं।<br /><br />प्रतुल जी का व्यक्तित्व चापलूसी वाला नहिं हो सकता।<br />आपके ब्लोग पर उनकी टिप्पणीयो से आप वाकिफ़ ही है।<br /><br />कृपया अन्यथा न लें।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-33078088327537214602010-11-25T13:32:17.578+00:002010-11-25T13:32:17.578+00:00.
सुज्ञ जी
लेकिन ये (………) पुछ कर क्यों देते हैं?....<br /><br />सुज्ञ जी <br />लेकिन ये (………) पुछ कर क्यों देते हैं?<br /><br />@ वो इसलिए कि क्रोध बनावटी होता है. केवल डराना उद्देश्य होता है. <br /><br />.PRATULhttps://www.blogger.com/profile/03991585584809307469noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-61145592530650210132010-11-25T13:25:34.651+00:002010-11-25T13:25:34.651+00:00..
चापलूसी की झलक .....!!!
@ आपने काफी सख्त मूल्.....<br /><br />चापलूसी की झलक .....!!!<br /><br />@ आपने काफी सख्त मूल्यांकन किया मेरा. <br /><br />फिलहाल स्वीकार है मुझे. <br /><br />चरित्र का मूल्यांकन जल्दबाजी में करना भी नहीं चाहिए. <br /><br />मुझमें धैर्य है इस बात को गलत सिद्ध करने का. <br /><br /><br />..PRATULhttps://www.blogger.com/profile/03991585584809307469noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-41412894460958239952010-11-25T13:18:53.879+00:002010-11-25T13:18:53.879+00:00..
दिव्या जी
आपने जल्दबाजी की टिप्पणी हटाने में......<br /><br />दिव्या जी<br /><br />आपने जल्दबाजी की टिप्पणी हटाने में. <br />तात्पर्य नहीं जाना. <br /><br />मेरी भूल है कि मैं अपनी परिभाषायें बनाने में ही लगा रहा और ये न जाना कि उनके अन्य अर्थ भी लग सकते हैं. आपका क्रोध मैं समझ सकता हूँ. <br /><br />लेकिन मेरा तात्पर्य यह था कि .. मैंने पोस्ट में फिर भी संयत शब्दावली का प्रयोग किया है. जो मेरी दृष्टि से चपत ही है <br /><br />उसके लिए तो और करारापन या सख्त व्यंग्य किया जाना चाहिए था. वह पोस्ट जल्दबाजी में लिखी गयी और काफी काट-छाँट कर परोसी गयी. <br /><br />मैं आपकी भावना समझते हुए आपकी इस नाराजगी को स्वीकार करता हूँ. <br /><br />मेरा औचित्य आपकी और अमित जी टिप्पणी की काट करना कतई नहीं था <br /><br />केवल अपने संतुलित वाक्य-विन्यास की सीमा से बाहर जाने का संकेत कर रहा था. <br /><br />"अभी विरोधियों ने चाँटा और थप्पड़ का स्वाद लिया ही नहीं है." तात्पर्य यह था. <br /><br />सुज्ञ जी भी अपनी जगह सही कह रहे हैं वे जुमले व्यावहारिकता में अवश्य चलते हैं लेकिन मैं अभी उतना व्यवहारिक नहीं हुआ हूँ शायद.<br /><br />मुझे मेरे मित्रजन अपेक्षित प्रतिक्रिया न दे पाने के लिए क्षमा करें. <br /><br /><br />..PRATULhttps://www.blogger.com/profile/03991585584809307469noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-59065443081160726572010-11-25T11:50:21.096+00:002010-11-25T11:50:21.096+00:00लो कल्लो बात…………
फिर लोग ऐसे क्यों इसका प्रयोग कर...लो कल्लो बात…………<br /><br />फिर लोग ऐसे क्यों इसका प्रयोग करते है?<br /><br />बजाऊं क्या कान के नीचे?<br />दूं क्या एक दाएं हाथ की?<br />लगता है एक लगानी पडेगी?<br />ये नाम क्यो नहिं लेते (जाने दो ये नाम ही खराब है, आपने तो व्याख्या कर दी)<br />लेकिन ये………।<br />पुछ कर क्यों देते हैं?सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-21900566238651198882010-11-25T09:36:00.525+00:002010-11-25T09:36:00.525+00:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-39016258285316415692010-11-25T07:48:58.980+00:002010-11-25T07:48:58.980+00:00..
प्रिय पाठको !
यह न तो थप्पड़ था और न ही चाँटा.....<br /><br />प्रिय पाठको ! <br />यह न तो थप्पड़ था और न ही चाँटा. हाँ इसमें करारापन अवश्य था. उसे ठीक पहचाना. <br />यह तो केवल मज़ाक में लगाई गई चपत थी. आपको सभी हस्त-प्रहारों के भेद बताने होंगे, जिससे आगे ऎसी भूल न हो. <br /><br />— 'चपत' मतलब ........ क्रोध को शांत करते हुए किया गया हस्त-प्रहार ........... इसमें केवल लक्ष्य पर चोट लगती है. अधिक आवाज नहीं होती. <br /><br />— 'चाँटा' मतलब ........ क्रोध को काबू न कर पाने में किया गया हस्त-प्रहार ....... इसमें चोट मारने के साथ अच्छी-खासी आवाज भी होती है. <br /><br />— 'थप्पड़' मतलब ...... क्रोध के साथ किया गया सप्रयास हस्त-प्रहार .......... इसमें चोट तो लगती ही है किन्तु उसकी गूँज वातावरण में काफी देर तक बनी रहती है. <br />एक भेद और होता है <br />— 'झापड़' ............. क्रोध की अतिशयता में स्वतः छूट जाने वाला हस्त-प्रहार. ..... इसमें काफी कुछ होता है - चोट, आवाज़, गूँज के साथ यह अपने चिह्न भी छोड़ देता है. <br /><br />......... यदि किसी को कोई अन्य भेद भी आते हों तो कृपया बताएँ. ध्यान रहे वे केवल खुले हस्त से सम्बंधित हों. <br /><br />..PRATULhttps://www.blogger.com/profile/03991585584809307469noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-66337223315750296352010-11-24T15:10:09.438+00:002010-11-24T15:10:09.438+00:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-30515566465406626882010-11-24T08:00:50.450+00:002010-11-24T08:00:50.450+00:00बहुत करारा थप्पड़..................... ना जी ना थप्...बहुत करारा थप्पड़..................... ना जी ना थप्पड़ रहने दीजिये नहीं तो फिर बखेड़ा खडा हो जाएगा.......................ज़वाब दिया है ..............Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8683536135406140676.post-37815628146476146972010-11-24T07:39:35.313+00:002010-11-24T07:39:35.313+00:00सटीक और गहन अध्यन आधारित व्यंग्य!!
सही संदेश प्रे...सटीक और गहन अध्यन आधारित व्यंग्य!!<br /><br />सही संदेश प्रेषित करता है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.com