मंगलवार, 25 मई 2010

चंदू मेरा बन्धु

ऑफिस में मेरा एक साथी है चन्द्र प्रकाश. हरियाणवी यादव. खेत-खलियान भरपूर, ढोर-डांगर भी घी-दूध में डूबे रहने के लिए अच्छी-खासी संख्या में है. चाहता तो ता पुलिस की नौकरी. पर हर बार इंटरव्यू में अच्छी सिफारिश ना होने के कारण मायूस होना पड़ता है. कमरदर्द की शिकायत उसे काफी रहने लगी है. पापा शादी के लिए उसपर दबाव बनाए रहते है. लेकिन मन-ही-मन वो...... नहीं बताना मना है. कविता सुन लीजिये. कविता में कहने की कवि को छूट है.  मेरे मित्र दीप जी ने इस कविता को फिर से जीवंत  करने  को कहा  था.

चंदू का मन ..... कोरा पेज़
बेशक उसकी छब्बीस एज़

पहले छापी ..... गर्ल इमेज़
'मैरीज' ने कर दिया इरेज़.

अब ऑफिस है कुर्सी-मेज़.
कमर दर्द करती है. तेज़.

नहीं पचा पाता नॉन-पेज़.
देसी घी से .... है परहेज़.

चौरों का करना था चेज़.
पुलिस मेन इच्छा डेमेज़.

मन अब भी रहता इंगेज.
नयी-नवेली .... गर्ल इमेज.

पापा लगते हैं ... चंगेज़.
रहता है मुनीरका विलेज.

चंदू मेरा .... कोरा पेज़.
जो इमेज़ लाता ....... इरेज़.

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नयी दिल्ली, India
समस्त भारतीय कलाओं में रूचि रखता हूँ.